भारतीय वन सेवा कि जाँच राज्य वन सेवा के द्वारा, वन विभाग में भ्रष्टाचार की जांच पर उठे सवाल, वन मुख्यालय की भूमिका संदिग्ध

मुंगेली, छत्तीसगढ़: वन विभाग में भ्रष्टाचार की जांच को लेकर एक गंभीर मामला सामने आया है, जिसमें जांच प्रक्रिया पर ही सवाल खड़े हो रहे हैं। छत्तीसगढ़ शासन के आदेश के बावजूद विभाग द्वारा ई-भुगतान नहीं किया गया और छत्तीसगढ़ भंडार क्रय नियमों का उल्लंघन करते हुए सामग्री की खरीदी की गई। इस मामले की जांच के आदेश दिए गए थे, लेकिन जांच की प्रक्रिया पर अब गंभीर सवाल उठ रहे हैं।

जांच में लापरवाही और अनियमितताएँ

  1. अयोग्य अधिकारियों को सौंपी गई जांच
    भ्रष्टाचार के आरोप एक आईएफएस अधिकारी पर लगे थे, लेकिन जांच महज एसडीओ (ACF) स्तर के अधिकारी से कराई गई। इस तरह की जाँच आमतौर पर उच्च स्तरीय समिति द्वारा की जाती है, लेकिन यहाँ इसकी अनदेखी की गई।
  2. जांच अधिकारी की अनुपस्थिति
    शिकायतकर्ता को जांच के लिए बुलाया गया था, लेकिन जब वह जांच के दिन पहुंचा तो जांच अधिकारी एसडीओ खुद ही मौजूद नहीं थे। शिकायतकर्ता ने कई बार फोन भी किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। इससे यह संदेह बढ़ता है कि जांच अधिकारी जाँच को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे।
  3. शिकायतकर्ता की अनुपस्थिति का बहाना बनाकर मामला बंद करने की साजिश
    वन विभाग द्वारा जांच रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि शिकायतकर्ता जांच में उपस्थित नहीं हुआ, जबकि सच्चाई यह है कि खुद अधिकारी ही उस दिन मौजूद नहीं थे। इसी बहाने से पीजीएन प्रकरण को समाप्त करने की सिफारिश कर दी गई।
  4. वन मुख्यालय की संदिग्ध भूमिका
    छत्तीसगढ़ शासन के नियमानुसार, शिकायतकर्ता उपस्थित हो या न हो, शिकायत की जांच नियमावली के अनुसार गुण-दोष के आधार पर की जानी चाहिए। बावजूद इसके, एक भारतीय वन सेवा (IFS) अधिकारी की जांच राज्य वन सेवा (SFS) के एसडीओ द्वारा की जा रही है, जो कि केवल औपचारिकता निभाने का प्रतीत होता है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यही एसडीओ स्वयं भ्रष्टाचार से जुड़े वाउचर में हस्ताक्षर कर चुके हैं। उन्होंने कार्य के पूरा होने और सामग्री खरीदी जाने का प्रमाणपत्र जारी किया था, जिसके बाद भुगतान किया गया। ऐसे में, जब वही अधिकारी स्वयं जांच करेंगे, तो निष्पक्ष जांच कैसे संभव हो सकती है?

क्या है आगे की राह?

इस तरह की अनियमितताओं से यह स्पष्ट है कि वन विभाग की जांच प्रक्रिया में पारदर्शिता की भारी कमी है। जब जांच अधिकारी ही अपनी जिम्मेदारी से बचने लगें और भ्रष्टाचार के आरोपों को दबाने की कोशिश करें, तो निष्पक्ष जांच की उम्मीद करना मुश्किल हो जाता है। शासन को इस मामले का स्वतः संज्ञान लेना चाहिए और उच्च स्तरीय जांच कराकर दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए।

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