महासमुंद वनमंडल में 6.50 करोड़ रुपये के कथित एएनआर घोटाले ने वन विभाग के प्रशासनिक कार्यों पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस मामले में जांच के नाम पर वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों को कथित रूप से केवल आर्थिक लेनदेन ठीक करने का माध्यम बनाया गया।
जांच और आरोपों की पृष्ठभूमि
महासमुंद वनमंडल के 69 कक्षों में एएनआर (एडवांस्ड नैचुरल रीजेनरेशन) कार्यों के नाम पर बिना काम किए ही 6.50 करोड़ रुपये की राशि निकाल लिए जाने का आरोप लगाया गया है। इस मामले की प्रारंभिक जांच जून 2024 में मुख्य वन संरक्षक श्रीमती शालिनी रैना द्वारा की गई थी। उनकी रिपोर्ट के आधार पर वन मुख्यालय से एक उच्चस्तरीय जांच टीम भेजी गई।

इस जांच दल में आईएफएस अधिकारी वरुण जैन, श्रीमती सतोवीसा समजदार, सेवानिवृत्त श्री उइके और अध्यक्षता में APCCF श्री कौलेन्द्र कुमार शामिल थे। टीम ने वन क्षेत्रों का निरीक्षण किया और प्रारंभिक रिपोर्ट में सभी कार्यों के पूरे होने की पुष्टि की।


मुख्यालय का दबाव और नोटिस की कार्रवाई
हालांकि, वन मुख्यालय के कथित दबाव के चलते जांच रिपोर्ट में यह दावा किया गया कि 35% कार्य नहीं हुआ है। इसके आधार पर संबंधित परिक्षेत्र अधिकारियों को 18 से 20 लाख रुपये और डिप्टी रेंजर्स व फॉरेस्ट गार्ड्स को 2 से 6 लाख रुपये की वसूली के नोटिस जारी किए गए।
फर्जी जांच का खुलासा
नोटिस प्राप्तकर्ताओं द्वारा मांगे गए अभिलेखों से यह स्पष्ट हुआ कि कोई वास्तविक जांच रिपोर्ट ही नहीं है। बिना किसी पंचनामे और प्राकलन विवरण के नोटिस जारी करना संदिग्ध माना जा रहा है। सामान्यतः जांच प्रक्रिया में कार्य क्षेत्र का मापन कर लॉस केस बनाया जाता है, लेकिन यहां बिना उचित दस्तावेजों के ही 35% कार्य न होने का दावा किया गया।
सामाजिक कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया
दुर्ग के सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल शेख करीम ने इस मामले को प्रशासनिक अनियमितता करार दिया है। उनका कहना है कि यदि इस पर जल्द कार्यवाही नहीं हुई तो बड़े अधिकारी इसी प्रकार छोटे अधिकारियों पर मनमाने फर्जी जांच का दबाव बनाते रहेंगे। उन्होंने इस मामले को उचित मंच पर उठाने की बात कही है।
क्या है आगे का रास्ता?
इस घोटाले की सच्चाई जानने के लिए निष्पक्ष और पारदर्शी जांच की मांग जोर पकड़ रही है। यदि यह केवल व्यक्तिगत लेनदेन विवाद था, तो इसे सुलझाने के लिए ईमानदार अधिकारियों का दुरुपयोग क्यों किया गया? क्या यह प्रशासनिक धांधली का एक नया उदाहरण है?
इस प्रकरण से वन विभाग की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्नचिह्न लग गया है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और विभाग इस मामले को किस प्रकार सुलझाते हैं।