ISRO ने PSLV-C60 से SpaDeX को लॉन्च कर रचा इतिहास, अंतरिक्ष की दुनिया में हिंदुस्तान ने लिखी एक और कहानी

ISRO launches PSLV-C60 for Space Docking Experiment: भारतीय स्पेस एजेंसी इसरो ने अंतरिक्ष की दुनिया में एक और इतिहास रच दिया है. PSLV-C60 रॉकेट को श्रीहरिकोटा, आंध्र प्रदेश से भारतीय समयानुसार रात 10:00:15 बजे सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया, जिसमें 24 सेकेंडरी पेलोड के साथ स्पैडेक्स मिशन भी शामिल है. अंतरिक्ष में डॉकिंग के लिए यह एक लागत प्रभावी प्रौद्योगिकी प्रदर्शन मिशन है, जिससे भारत, चीन, रूस और अमेरिका जैसी विशिष्ट सूची में शामिल हो गया है.

ISRO ने अपने महत्वाकांक्षी मिशन PSLV-C60 SpaDeX को सफलतापूर्वक लॉन्च करके अंतरिक्ष की दुनिया में एक नई इबारत लिखी है. इस मिशन के साथ भारत अंतरिक्ष डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करेगा. भारत का सपना अंतरिक्ष में अपना खुद का स्पेस स्टेशन स्थापित करने और चंद्रयान-4 की सफलता हासिल करने का इस मिशन पर आधारित है. इस मिशन में दो स्पेसक्राफ्ट शामिल हैं। पहला स्पेसक्राफ्ट “टारगेट” यानी लक्ष्य के नाम से जाना जाता है, जबकि दूसरा “चेजर” यानी पीछा करने वाला नाम से पहचाना जाता है. दोनों स्पेसक्राफ्ट का वजन 220 किलोग्राम है. PSLV-C60 रॉकेट द्वारा इन्हें 470 किमी की ऊंचाई पर अलग-अलग दिशाओं में लॉन्च किया जाएगा.

स्पेसडेक्स भारत के अपने अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना के लिए इसरो के दृष्टिकोण में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है. अंतरिक्ष में डॉकिंग में महारत हासिल करके, भारत वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में खुद को सबसे आगे रख रहा है.

क्या होती है डॉकिंग और स्पेस में कैसे करती है ये काम

इस मिशन के दौरान, टारगेट और चेजर की गति 28,800 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंच सकती है. लॉन्च के लगभग 10 दिन बाद, डॉकिंग प्रक्रिया शुरू होगी, यानी दोनों स्पेसक्राफ्ट को आपस में जोड़ा जाएगा. चेजर स्पेसक्राफ्ट पहले 20 किलोमीटर की दूरी से टारगेट की ओर बढ़ेगा. इसके बाद यह दूरी धीरे-धीरे घटकर 5 किलोमीटर, फिर डेढ़ किलोमीटर, और अंत में 500 मीटर तक पहुंच जाएगी.

जब चेजर और टारगेट के बीच की दूरी केवल 3 मीटर रह जाएगी, तब डॉकिंग प्रक्रिया शुरू की जाएगी. इस दौरान दोनों स्पेसक्राफ्ट आपस में जुड़ जाएंगे. इसके बाद, इलेक्ट्रिकल पावर का ट्रांसफर किया जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया को पृथ्वी से ही नियंत्रित किया जाएगा. यह मिशन इसरो के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयोग है, क्योंकि भविष्य के स्पेस कार्यक्रम इसी मिशन पर निर्भर हैं.

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