क्या होता है खरना? आज से शुरू हो रहा है 36 घंटों का कठिन उपवास…यहां जानें सबकुछ

Chhath Puja Second Day: छठ का महापर्व बिहार, यूपी और झारखंड में बड़े ही धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह चार दिनों तक चलने वाला पर्व है, जिसमें श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं. इस वर्ष छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर को नहाय-खाय के दिन से हुई है. आज छठ का दूसरा दिन है, जिसे खरना या लोहंडा कहते हैं. इस दिन से व्रतियों का कठिन निर्जला व्रत शुरू हो जाता है, जो 36 घंटे तक चलता है.

खरना का अर्थ होता है शुद्धिकरण: इस दिन व्रती (व्रत करने वाले लोग) पूरे दिन उपवास रखते हैं और केवल एक बार भोजन करते हैं. नहाय-खाय के बाद आज खरना के दिन व्रती शाम के समय पूजा करके गुड़ से बनी खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं. खरना के दिन का यह भोजन व्रतियों के लिए शरीर और मन की शुद्धि का प्रतीक है. इसके बाद से व्रती बिना पानी के 36 घंटे तक उपवास करते हैं.

खरना की विधि: 

खरना के दिन विशेष रूप से गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद बनाया जाता है. पूजा में मूली, केला जैसे फल भी चढ़ाना शुभ माना जाता है. इस दिन परंपरागत तरीके से मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है. प्रसाद को सूर्य देव और भगवान गणेश को अर्पित करने के बाद व्रती उसे ग्रहण करते हैं. इसके बाद से उनका निर्जला उपवास शुरू होता है.

36 घंटे का कठिन निर्जला व्रत:

खरना के बाद से व्रती 36 घंटे तक बिना पानी के उपवास करते हैं. यह व्रत कठिन माना जाता है, लेकिन आस्था के कारण व्रतियों को यह कठिन नहीं लगता. इस दौरान व्रती जमीन पर सोते हैं और शुद्धता का पूरा ध्यान रखते हैं.

छठ पूजा के दौरान विशेष नियम:

छठ महापर्व के दौरान परिवार के सभी सदस्य मांस-मदिरा का सेवन नहीं करते और व्रती भी जमीन पर सोते हैं. इस व्रत में शुद्धता और पवित्रता का विशेष महत्व है. व्रती अपने घरों में किसी को बुलाकर प्रसाद नहीं देते, बल्कि खुद लोगों के घर जाकर प्रसाद पहुंचाते हैं.

छठ पूजा की सामग्री:

छठ पूजा में पूजा के लिए नई साड़ी, बांस की बनी टोकरियां, पीतल या बांस का सूप, दूध, जल, लोटा, गन्ना, मौसमी फल, पान, सुपारी, मिठाई और दिया आदि चीजों का इस्तेमाल होता है. सूर्य देव को अर्पण किए जाने वाले प्रसाद में मौसमी फल और सब्जियों का विशेष महत्व होता है.

छठ महापर्व न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह परिवार, समाज और प्रकृति से जुड़ने का भी एक माध्यम है. इस पर्व के दौरान लोग अपने मन और शरीर को शुद्ध करने के साथ-साथ सूर्य देवता को धन्यवाद देते हैं, जो जीवन के लिए ऊर्जा का स्रोत हैं.

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