देवशयनी एकादशी का व्रत 17 जुलाई दिन बुधवार को है. इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. पूजा के समय देवशयनी एकादशी की व्रत कथा पढ़नी जरूरी होती है. इसको पढ़ने से व्रत पूरा होगा और उसका पूर्ण लाभ प्राप्त होगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णु योग निदा में चले जाते हैं. इस साल देवशयनी एकादशी के दिन शुभ योग, शुक्ल योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और अमृत सिद्धि योग बन रहे हैं. देवशयनी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के पाप मिटते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग की प्राप्ति होती है. आइए जानते हैं देवशयनी एकादशी की व्रत कथा, पूजा मुहूर्त और व्रत का पारण समय क्या है?
देवशयनी एकादशी की व्रत कथा
एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से आषाढ़ शुक्ल एकादशी की व्रत विधि और महत्व के बारे में बताने का अनुरोध किया. तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि इस व्रत को देवशयनी एकादशी के नाम से जानते हैं. यह व्रत जीवों के उद्धार के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. जो इस व्रत को नहीं करता है, उसे नरक में स्थान मिलता है. ब्रह्म देव ने नारद जी से इस व्रत के महत्व और विधि को बताया था, वह तुमसे कहता हूं. इसकी कथा कुछ इस प्रकार से है-
कथा के अनुसार, एक समय में एक महान राजा मांधाता थे, जो बहुत की दयालु, धार्मिक, प्रतापी और सत्यवादी थे. वे अपनी प्रजा की संतान की तरह सेवा करते थे. उनके सुख और दुख का ध्यान रखते थे. उनके राज्य में सभी खुशहाल थे. एक बार ऐसा समय आया कि लगातार 3 साल तक बारिश नहीं हुई, जिसके कारण फसलें बर्बाद हो गईं और अकाल पड़ गई. उनकी प्रजा त्राहि-त्राहि करने लगी.
एक दिन प्रजा ने राजा से गुहार लगाई कि आप इस स्थिति से बाहर आने का कोई उपाय करें. राजा मांधाता भी परेशान हो गए. उनको यह देखा नहीं गया और वे सेना के साथ जंगल की ओर चले गए. वे काफी दिनों तक यात्रा करते रहे और तब जाकर वे ब्रह्मा जी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम के पास पहुंचे. वे आश्रम के अंदर गए और अंगिरा ऋषि को प्रणाम किया. इस अंगिरा ऋषि ने उनसे आने का कारण पूछा.
राजा मांधाता ने अंगिरा ऋषि से कहा कि अकाल के कारण उनकी प्रजा परेशान है, अन्न का संकट उत्पन्न हो गया है. चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है. बारिश न होने से यह स्थिति पैदा हो गई है. इस संकट से निबटने का कोई मार्ग बताएं. इस पर अंगिरा ऋषि ने कहा कि आपको आषाढ़ शुक्ल एकादशी का व्रत विधि विधान से करना चाहिए, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा करनी है.
अंगिरा ऋषि ने कहा कि इस व्रत के करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होंगे और आपकी मनोकामना को पूरा करेंगे. आपके अर्जित पुण्य से राज्य में बारिश होगी और अन्न का संकट दूर होगा. प्रजा फिर से खुशहाल हो जाएगी. जो भी इस व्रत को करता है, उसके संकट दूर होते हैं. उसे सिद्धियों की प्राप्ति होती है.
अंगिरा ऋषि को प्रणाम करके राजा मांधाता अपनी राजधानी वापस आ गए. जब आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि आई तो उन्होंने पूरी प्रजा के साथ इस व्रत को विधिपूर्वक किया. विष्णु पूजा की और दान किया. नियमपूर्वक पारण किया. इस व्रत को करने के कुछ समय बाद उनके राज्य में बारिश हुई. जिससे फसलों की पैदवार भी अच्छी हुई. उनका राज्य फिर से धन और धान्य वाला हो गया. उनकी प्रजा के दुखों का अंत हो गया.
देवशयनी एकादशी 2024 शुभ समय और पारण
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि का प्रारंभ: 16 जुलाई, मंगलवार, 08:33 पीएम से
आषाढ़ शुक्ल एकादशी तिथि का समापन: 17 जुलाई, बुधवार, 09:02 पीएम पर
विष्णु पूजा का मुहूर्त: सुबह 05:34 बजे से
ब्रह्म मुहूर्त: 17 जुलाई को 04:13 एएम से 04:53 एएम तक
देवशयनी एकादशी व्रत पारण का समय: 18 जुलाई, गुरुवार, 05:35 एएम से 08:20 एएम तक
सर्वार्थ सिद्धि योग: 17 जुलाई को 05:34 एएम से 18 जुलाई को 03:13 एएम तक
अमृत सिद्धि योग: 17 जुलाई को 05:34 एएम से 18 जुलाई को 03:13 एएम तक
शुभ योग: प्रात:काल से 07:05 एएम तक
शुक्ल योग: 07:05 एएम से पूरे दिन