हजारों किसान फिर सड़कों पर! हाईवे पर डेरा, बोले– अबकी बार लंबी लड़ाई तय

नागपुर
महाराष्ट्र की सियासत और सड़कें दोनों इन दिनों गर्म हैं। पूर्व मंत्री और प्रहार जनशक्ति पार्टी के प्रमुख बच्चू कडू की अगुवाई में हजारों किसान अब “मीटिंग नहीं, आंदोलन से न्याय” के नारे के साथ सड़कों पर उतर आए हैं। नागपुर-हैदराबाद हाईवे पर किसानों ने डेरा डाल दिया है — ट्रैक्टरों की कतारें, सड़क पर पड़े कांटेदार पेड़ और हर ओर गूंजते नारे… दृश्य किसी जनक्रांति से कम नहीं। करीब 25 किलोमीटर तक हाईवे पर वाहनों की लंबी कतारें लग चुकी हैं और पुलिस बल हालात संभालने में जुटा है।

जब तक कर्ज माफी नहीं, तब तक आंदोलन जारी
बच्चू कडू ने साफ कहा है कि यह संघर्ष अब पीछे हटने वाला नहीं है। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है कि अगर किसानों की मांगें नहीं मानी गईं, तो अगला कदम ट्रेन रोकने और भारत बंद का होगा। उनका कहना है कि वर्षों से किसानों को भरोसे और वादों के सहारे रखा गया, लेकिन अब वे अपने अधिकार की लड़ाई निर्णायक मोड़ तक ले जाएंगे। कडू ने कहा- अब सरकार की मीटिंग नहीं, जनता की सड़कें न्याय देंगी। यह आंदोलन सिर्फ महाराष्ट्र नहीं, पूरे देश के किसानों की आवाज बनेगा।

 किसानों की चार प्रमुख मांगें
किसानों ने अपने आंदोलन के लिए चार स्पष्ट मांगें रखी हैं —
-संपूर्ण कर्जमाफी
-बारिश और फसल नुकसान का उचित मुआवजा
-राज्य के दिव्यांग नागरिकों को ₹6,000 मासिक भत्ता
-सभी फसलों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी
-कडू का कहना है कि ये मांगे किसानों के अस्तित्व से जुड़ी हैं, किसी राजनीतिक सौदेबाजी का हिस्सा नहीं।

हाईवे पर जाम, प्रशासन अलर्ट मोड में
प्रदर्शनकारियों ने जब से हाईवे जाम किया है, तब से ट्रैफिक व्यवस्था चरमराई हुई है। कई जगह यात्रियों को वैकल्पिक रास्तों से डायवर्ट किया गया है। पुलिस और प्रशासन ने प्रदर्शन स्थल पर भारी पुलिस बल तैनात कर दिया है, ताकि स्थिति बेकाबू न हो।
 
आंदोलन के लिए तैयार किसान
इस बार किसान लंबी लड़ाई के लिए पूरी तैयारी के साथ आए हैं। ट्रैक्टरों में राशन, दवाइयां, पानी और तंबू तक मौजूद हैं। आंदोलनकारियों का कहना है कि वे “खाली हाथ घर नहीं लौटेंगे” – चाहे उन्हें कितने भी दिन रुकना पड़े।

 बच्चू कडू का बढ़ता जनसमर्थन
कडू बीते महीनों से लगातार किसानों की समस्याओं को लेकर राज्य सरकार पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने देशभर के किसानों को नागपुर बुलाकर इस आंदोलन को “महाएलगार” का नाम दिया है। ग्रामीण इलाकों में उनका यह रुख तेजी से चर्चा में है – एक तरफ सरकार इसे कानून-व्यवस्था की चुनौती मान रही है, तो दूसरी तरफ कई किसान संगठन अब खुले समर्थन में उतर आए हैं।

 

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