देव दीपावली: जब काशी सचमुच बन जाती है देवलोक

वाराणसी

वाराणसी में कार्तिक पूर्णिमा की रात गंगा के अर्ध चंद्राकार घाटों की छटा देवलोक का अहसास कराती है। देखने वाले को महसूस होता है कि गंगा तट पर देवलोक की छवि उतर आई है। काशी की देव दीपावली का यह नजारा अद्भुत होता है। बजते घंटे-घड़ियाल, शंखों की गूंज व हिलोरे लेती आस्था, जिसे देखने के लिए देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु काशी आते हैं।

काशी में लक्खा मेले की प्राचीन परम्परा है। इसमें एक लाख से अधिक लोग एकत्र होते हैं। नाटी इमली का भरत मिलाप, तुलसी घाट की नाग नथैया, चेतगंज की नक्कटैया और रथयात्रा मेले की शृंखला में यह काशी का पांचवां लक्खा मेला है। इस अवसर पर गंगा के 84 घाटों पर सात किलोमीटर तक शृंखलाबद्ध दीप जलाए जाते हैं। शाम होते ही ये सभी घाट दीपों की रोशनी में नहा उठते हैं और गंगा की धारा में इन दीपों की अलौकिक छटा निखरती है।

शंकराचार्य की प्रेरणा से प्रारंभ होने वाला यह दीपोत्सव पहले केवल पंचगंगा घाट की शोभा हुआ करता था लेकिन धीरे-धीरे काशी के सभी घाटों पर दीपों की शृंखला बढ़ती चली गई और दो दशकों से देव दीपावली ने महापर्व का स्वरूप ले लिया है। इस तरह देव दीपावली सांस्कृतिक राजधानी काशी की खास पहचान बन गई है।

अहिल्याबाई होल्कर ने स्थापित किया था हजारा दीपस्तंभ
काशी की देव दीपावली प्राचीनता और परम्परा का अद्भुत संगम है। इतिहास में इसका जिक्र मिलता है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने पंचगंगा घाट पर पत्थरों से बना खूबसूरत हजारा दीपस्तंभ स्थापित किया था।

यह दीपस्तंभ देव दीपावली की परम्परा का साक्षी है। काशी में देव दीपावली की शुरूआत भी यहीं से हुई थी। यह दीपस्तंभ देव दीपावली के दिन 1001 से अधिक दीपों की लौ से जगमगाता है। इस दृश्य को यादों में सहेजने के लिए देश ही नहीं, विदेशों से पर्यटक काशी पहुंचते हैं।

मां गंगा की अष्टधातु की प्रतिमा का होता है दर्शन-पूजन
देव दीपावली के अवसर पर मां गंगा की अष्टधातु की प्रतिमा को गंगा घाट पर विराजमान किया जाता है। मां गंगा की यह प्रतिमा साल में दो बार गंगा दशहरा और देव दीपावली पर ही लोगों के दर्शन-पूजन के लिए स्थापित की जाती है।

इस तरह काशी में कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान की यह परम्परा देव आराधना का महापर्व बन जाती है। काशी की गंगा आरती तो देशभर में प्रसिद्ध है ही, देव दीपावली पर आरती का नजारा और भी अद्भुत होता है।

देव दीपावली की पृष्ठभूमि में एक पौराणिक कथा भी है। त्रिपुरासुर राक्षस ने ब्रह्माजी की तपस्या कर वरदान पा लिया था और तीनों लोकों पर अपना आधिपत्य जमा लिया था।

इसके बाद देवताओं ने भगवान शिव से उसका अंत करने की प्रार्थना की। उन्होंने इसी दिन त्रिपुरासुर का वध किया था। इस खुशी में देवताओं ने दीपावली मनाई, जिसे आगे चलकर देव दीपावली के रूप में मान्यता मिली इसलिए देव दीपावली को ‘त्रिपुरी’ के नाम से भी जाना जाता है।

Recent Post

Live Cricket Update

You May Like This

error: Content is protected !!

4th piller को सपोर्ट करने के लिए आप Gpay - 7587428786