टोक्यो
क्या आपने कभी सोचा है कि सांस लेने का रास्ता नाक या मुंह ही क्यों हो? जापान के वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया कि Butt से भी ऑक्सीजन ली जा सकती है. यह सुनने में मजाक लगता है, लेकिन यह एक गंभीर चिकित्सा खोज है. हाल ही में हुए एक क्लिनिकल ट्रायल से पता चला कि यह तरीका सुरक्षित है. अगर यह कामयाब रहा, तो सांस की नलियां बंद होने पर मरीजों के लिए यह एक वैकल्पिक रास्ता बन सकता है.
यह तरीका कैसे काम करता है?
इस प्रक्रिया का नाम है 'एंटरल वेंटिलेशन'. इसमें एक खास तरल पदार्थ, जिसे पर्फ्लोरोकार्बन कहते हैं, रेक्टम (मलद्वार) में डाला जाता है. इस तरल में बहुत ज्यादा ऑक्सीजन भरी होती है. विचार यह है कि ऑक्सीजन आंतों की दीवारों से गुजरकर खून में चली जाए. इससे मरीज को नाक या मुंह से सांस लेने की जरूरत न पड़े.
यह उन मरीजों के लिए फायदेमंद हो सकता है जिनकी सांस की नलियां ब्लॉक हो गई हों, जैसे दम घुटने या चोट लगने पर. यह आइडिया नया नहीं है. जानवरों में यह पहले से होता है. सूअर, चूहे, कछुए और कुछ मछलियां मुसीबत के समय पीछे से ही ऑक्सीजन ले लेती हैं. इंसानों के लिए यह रिसर्च पिछले साल फिजियोलॉजी में इग्नोबेल प्राइज जीत चुकी है – जो मजाकिया लेकिन वैज्ञानिक खोजों को सम्मानित करता है.
ट्रायल में क्या हुआ?
यह पहला मानव ट्रायल था, जो सिर्फ सुरक्षा की जांच के लिए था. प्रभावशीलता की टेस्टिंग अभी बाकी है. जापान में 27 स्वस्थ पुरुष वॉलंटियर्स को चुना गया. उन्हें एक तरल पदार्थ दिया गया, जिसमें ऑक्सीजन नहीं थी (सुरक्षा के लिए). हर व्यक्ति को 25 मिलीलीटर से 1500 मिलीलीटर तक का तरल रेक्टम में रखना था. 60 मिनट तक होल्ड करना था.
परिणाम सकारात्मक आए. कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं हुआ. हां, जिन्हें सबसे ज्यादा मात्रा (1500 मिलीलीटर) दी गई, उन्हें पेट में फूलना, असुविधा और हल्का दर्द महसूस हुआ. बाकी के महत्वपूर्ण संकेत जैसे ब्लड प्रेशर, हृदय गति सब सामान्य रहे. सिर्फ 7 लोगों को पूरे घंटे तक होल्ड करने में दिक्कत हुई. बाकी सबने अच्छे से सहन किया.
वैज्ञानिकों की राय
ओसाका यूनिवर्सिटी के बायोमेडिकल साइंटिस्ट टाकानोरी टेकेबे कहते हैं कि यह पहली बार इंसानों पर डेटा आया है. नतीजे सिर्फ प्रक्रिया की सुरक्षा दिखाते हैं, प्रभावशीलता की नहीं. लेकिन अब सहनशक्ति साबित हो गई है, तो अगला कदम ऑक्सीजन वाली तरल से ब्लड में ऑक्सीजन पहुंचाने की जांच होगा.
अगला ट्रायल ऑक्सीजन वाली तरल पर होगा. देखेंगे कि कितनी मात्रा और कितने समय तक रखने से मरीज का ब्लड ऑक्सीजन लेवल सुधरेगा. यह ट्रायल मरीजों पर होगा, जो असल में ऑक्सीजन की जरूरत में होंगे.
क्यों महत्वपूर्ण है यह खोज?
सांस की समस्या दुनिया भर में बड़ी बीमारी है. कोविड जैसी महामारी में लाखों लोगों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ी. अगर यह तरीका काम कर गया, तो यह बैकअप ऑप्शन बनेगा. खासकर उन जगहों पर जहां पारंपरिक तरीके संभव न हों. लेकिन अभी यह शुरुआती स्टेज में है. ज्यादा ट्रायल्स में समय लगेगा. यह रिसर्च मेड जर्नल में छपी है.









