एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाले का बेटा गिरफ़्तार: सोनम वांगचुक की विरासत और हक़ीक़त

एवरेस्ट पर तिरंगा फहराने वाले का बेटा गिरफ़्तार: सोनम वांगचुक की विरासत और हक़ीक़त

🏔️ 1965, एक युवा पैरामिलिट्री जवान, नाम सोनम वांग्याल। उम्र सिर्फ़ 23 साल और आँखों में सपना—भारत का तिरंगा दुनिया की सबसे ऊँची चोटी, एवरेस्ट, पर फहराना।
उन्होंने यह कर दिखाया। उसी साल उन्हें अर्जुन अवॉर्ड 🏅 और पद्मश्री 🎖️ से नवाज़ा गया।

👉 यही शूरवीर आज के प्रख्यात पर्यावरणविद् और शिक्षा सुधारक सोनम वांगचुक के पिता हैं।

 

रहस्य और राष्ट्र रक्षा

1965 में ही शुरू हुआ था एक गुप्त मिशन—नंदादेवी प्लूटोनियम मिशन। भारत और अमेरिका की खुफ़िया एजेंसियों को चीन की परमाणु गतिविधियों पर नज़र रखनी थी।
उस खतरनाक मिशन का हिस्सा भी सोनम वांग्याल बने। पहाड़ों का बेटा अपनी जान हथेली पर रखकर देश की सुरक्षा में लगा था।

जनता की आवाज़

📌 1984—लद्दाख की जनता अनुसूचित जनजाति दर्जे की माँग को लेकर सड़क पर उतरी।
उस आंदोलन की अगुवाई वही सोनम वांग्याल कर रहे थे। उन्होंने भूख-हड़ताल की और उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ✋ ख़ुद लेह पहुँचीं। संवाद हुआ, संवेदना दिखाई गई और समाधान निकला।
उस दौर में सत्ता जनता की आवाज़ सुनती थी।

एक सच्चा राष्ट्रसेवक

1993 में सोनम वांग्याल इंटेलिजेंस ब्यूरो में असिस्टेंट डायरेक्टर पद से सेवानिवृत्त हुए।
पूरी ज़िंदगी राष्ट्र की सुरक्षा, सम्मान और अस्मिता के लिए समर्पित रही।

और आज…

आज उसी वीर का बेटा सोनम वांगचुक —
📚 शिक्षा सुधारक, 🌱 पर्यावरण योद्धा और 🚩 जनता की आवाज़ — अपनी सरहद और सरज़मीन की हिफ़ाज़त के लिए संघर्षरत है।

उन्होंने -40°C ❄️ तक की ठंड में सेना के लिए सौर ऊर्जा चालित टेंट बनाए। इनसे न सिर्फ़ जवानों की ज़िंदगियाँ बचीं बल्कि करोड़ों रुपए भी बचाए गए।

फिर भी, आज वही व्यक्ति सवाल पूछने पर गिरफ़्तार कर लिया गया।

👉 जिस पिता को पद्मश्री मिला, उसी बेटे को “देशद्रोही” का तमगा और अब गिरफ़्तारी का दर्द।
👉 जिस पिता के अनशन पर प्रधानमंत्री ने संवाद किया, उसी बेटे के अनशन को पुलिस बंदोबस्त 🚔 और मीडिया की चीख-पुकार 📺 से तोड़ा गया।

सोनम वांगचुक की गिरफ़्तारी

शिक्षा सुधारक और पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक हाल ही में गिरफ़्तार किए गए।

उन्होंने लद्दाख में पर्यावरण और स्थानीय लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए आवाज़ उठाई थी।

पुलिसिया कार्रवाई और गिरफ़्तारी ने आम लोगों के बीच गहरी नाराज़गी और सहानुभूति दोनों पैदा की।

सवाल यह है कि जिस धरती को बचाने के लिए वे लड़ रहे हैं, उसी धरती पर उनकी आवाज़ क्यों दबाई जा रही है?

 

निष्कर्ष

आज ज़रूरत है उस संवेदना की, जो कभी इंदिरा गाँधी ने दिखाई थी।
सोनम वांगचुक और उनके पिता सोनम वांग्याल की कहानी हमें यह याद दिलाती है कि—
देशभक्ति सिर्फ़ बंदूकों से नहीं, सवाल पूछने और अपनी धरती-मिट्टी की रक्षा करने से भी होती है।

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