निदा फ़ाज़ली: संवेदनाओं के शायर और इंसानियत की आवाज़

निदा फ़ाज़ली: संवेदनाओं के शायर और इंसानियत की आवाज़

उर्दू और हिंदी कविता की दुनिया में एक ऐसा नाम, जिसने ज़िंदगी के गहरे अनुभवों को बेहद सादे शब्दों में बयां किया—वो थे निदा फ़ाज़ली। उनका असली नाम मुक़्तदा हसन था और जन्म 12 अक्तूबर 1938 को दिल्ली में हुआ था। विभाजन के समय उनका परिवार पाकिस्तान चला गया, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहने का फ़ैसला किया। यही फ़ैसला उनके व्यक्तित्व और उनकी सोच का प्रतीक था—“सरहदें इंसान को बाँट सकती हैं, इंसानियत को नहीं।”

✍️ जीवन यात्रा

निदा फ़ाज़ली ने अपनी शिक्षा ग्वालियर में प्राप्त की और वहीं से साहित्य और शायरी की ओर उनका झुकाव हुआ। ग़ालिब, मीर और कबीर उनकी प्रेरणा के बड़े स्रोत रहे। वह न केवल उर्दू बल्कि हिंदी और भारतीय लोकभाषाओं से भी प्रभावित रहे।

1960 के दशक में उन्होंने पत्रकारिता और लेखन की शुरुआत की। उनके लेख और कॉलम समाज की सच्चाइयों को आईना दिखाते थे। बाद में मुंबई आने के बाद उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में गीत और ग़ज़ल लिखने का काम शुरू किया। उनकी रचनाएँ आम आदमी के दिल की आवाज़ बनीं।

🎬 फिल्मी सफ़र

निदा फ़ाज़ली ने कई मशहूर गीत लिखे जिनमें “होश वालों को खबर क्या”, “आहिस्ता-आहिस्ता”, और “कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता” जैसे नग़मे आज भी ज़ुबान पर हैं। उनके लिखे गीतों ने फिल्मों को संवेदनाओं से भर दिया।

🕊️ संघर्ष और विवाद

फिल्म इंडस्ट्री में रहते हुए भी वे अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करते थे। कई बार बड़े संगीतकारों और निर्माताओं से मतभेद हुआ, लेकिन उनकी लेखनी कभी झुकी नहीं। उन्होंने कट्टरता और धार्मिक पाखंड के ख़िलाफ़ खुलकर लिखा, जिसके कारण आलोचनाएँ भी झेलीं, लेकिन उन्होंने हमेशा “इंसानियत” को सबसे ऊपर रखा।

🏆 सम्मान

निदा फ़ाज़ली को साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिले। वे दूरदर्शन और आकाशवाणी के चर्चित कार्यक्रमों का हिस्सा रहे।

🕯️ निधन

8 फरवरी 2016 को मुंबई में उनका निधन हो गया। लेकिन उनकी कविताएँ, ग़ज़लें और गीत आज भी लोगों के दिलों में जिंदा हैं।

🌹 निदा फ़ाज़ली के 20 मशहूर शेर

1. अब किसी से भी शिकायत न रही
जाने किस किस से गिला था पहले

2. अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं

3. एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा

4. ग़म है आवारा अकेले में भटक जाता है
जिस जगह रहिए वहाँ मिलते-मिलाते रहिए

5. इस अँधेरे में तो ठोकर ही उजाला देगी
रात जंगल में कोई शम्अ जलाने से रही

6. कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

7. कहता है कोई कुछ तो समझता है कोई कुछ
लफ़्ज़ों से जुदा हो गए लफ़्ज़ों के मआनी

8. ख़ुदा के हाथ में मत सौंप सारे कामों को
बदलते वक़्त पे कुछ अपना इख़्तियार भी रख

9. किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो

10. कुछ लोग यूँही शहर में हम से भी ख़फ़ा हैं
हर एक से अपनी भी तबीअ’त नहीं मिलती

11. कुछ तबीअत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुई
जिस को चाहा उसे अपना न सके जो मिला उस से मोहब्बत न हुई

12. बड़े बड़े ग़म खड़े हुए थे रस्ता रोके राहों में
छोटी छोटी ख़ुशियों से ही हम ने दिल को शाद किया

13. बदला न अपने-आप को जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे

14. बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता

15. दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है

16. नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई

17. हर एक बात को चुप-चाप क्यूँ सुना जाए
कभी तो हौसला कर के नहीं कहा जाए

18. यक़ीन चाँद पे सूरज में ए’तिबार भी रख
मगर निगाह में थोड़ा सा इंतिज़ार भी रख

19. ये काटे से नहीं कटते ये बाँटे से नहीं बटते
नदी के पानियों के सामने आरी कटारी क्या

20. ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला

 

निष्कर्ष

निदा फ़ाज़ली का जीवन हमें यह सिखाता है कि शायरी केवल अल्फ़ाज़ नहीं, बल्कि इंसानियत की पुकार है। उनके लिखे हुए शेर और गीत हमें याद दिलाते हैं कि ज़िंदगी की सबसे बड़ी सच्चाई मोहब्बत, इंसानियत और उम्मीद है।

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