चंडीगढ़
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 14 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने यह निर्णय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर लिया, जिसमें बताया गया कि पीड़िता की गर्भावस्था 29 सप्ताह छह दिन की हो चुकी है और उसकी स्वास्थ्य स्थिति गर्भपात के लिए उपयुक्त नहीं है।
मेडिकल रिपोर्ट का हवाला
मेडिकल बोर्ड ने अदालत को सूचित किया कि पीड़िता की नाड़ी और रक्तचाप असामान्य हैं, ऐसे में गर्भपात चिकित्सकीय रूप से सुरक्षित नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, इस स्थिति में गर्भपात से पीड़िता की जान को गंभीर खतरा हो सकता है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी निर्णायक चिकित्सकीय राय के बाद संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत गर्भपात की अनुमति देना संभव नहीं है।
अंतरिम राहत और सहायता
हालांकि, अदालत ने पीड़िता को राहत देते हुए हरियाणा सरकार को निर्देश दिया कि वह उसे कम से कम चार लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा तत्काल प्रदान करे। इसके साथ ही, हरियाणा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को भी कहा गया है कि वह भारतीय न्यायतंत्र संहिता (BNS) की धारा 396(4) या किसी अन्य उपयुक्त योजना के अंतर्गत पीड़िता को अतिरिक्त मुआवजा और सहायता देने पर विचार करे। यह समस्त राहत अदालती आदेश प्राप्त होने के दो महीने के भीतर दी जानी चाहिए।
चिकित्सकीय देखभाल की व्यवस्था
अदालत ने निर्देश दिया कि पीड़िता को चंडीगढ़ के पीजीआई (PGIMER) में भर्ती कराया जाए, जहां बच्चे के जन्म तक उसे सभी आवश्यक चिकित्सकीय सुविधाएं और सहायता प्रदान की जाएंगी। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि बच्चे के जन्म के बाद उसका डीएनए नमूना संरक्षित किया जाए और जांच अधिकारी को सौंपा जाए, ताकि आपराधिक जांच आगे बढ़ सके। यदि पीड़िता बच्चे को गोद देने की इच्छुक होती है, तो हरियाणा सरकार व संबंधित एजेंसियां बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी लेंगी और कानूनी प्रक्रिया के अनुसार पालन-पोषण या गोद लेने की व्यवस्था सुनिश्चित करेंगी।
गोपनीयता बनाए रखने का निर्देश
कोर्ट ने यह स्पष्ट निर्देश दिया कि पीड़िता और उसके माता-पिता की पहचान पूरी तरह गोपनीय रखी जाए। किसी भी न्यायिक, पुलिस या प्रशासनिक प्रक्रिया के दौरान उनकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी।