बेंगलुरु
कर्नाटक सरकार की ओर से जातिगत जनगणना कराई जा रही है, जिसके खिलाफ हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई है। इस याचिका पर सुनवाई का दूसरा दिन था और इस दौरान दिलचस्प दलीलें देखने को मिलीं। कर्नाटक सरकार की ओर से जातीय जनगणना का यह कहते हुए विरोध हो रहा है कि इसका राजनीतिक इस्तेमाल करने की तैयारी है। इसके अलावा एक बार जातीय गणना होने के बाद दोबारा फिर इसकी क्या जरूरत है, यह सवाल भी उठाया जा रहा है। इसी को लेकर कर्नाटक हाई कोर्ट में मंगलवार को दिलचस्प बहस देखने को मिली।
अभिषेक मनु सिंघवी ने कर्नाटक सरकार की ओर से दलीलें देते हुए कहा, 'हमारे देश में जाति है और वह अलग-अलग वर्गों का निर्धारण करती है। हम एकांत में या फिर किसी टापू में रहकर तो उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते।' उन्होंने कहा कि समाज के सभी वर्गों को समान प्रतिनिधित्व और सुविधाएं देने के लिए यह जरूरी है कि सरकार के पास पूरा डेटा हो। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि सरकार इस डेटा का इस्तेमाल राजनीतिक हितों के लिए करेगी। उन्होंने सवाल किया कि आखिर समाज के लिए बिना कोई डेटा जुटाए कैसे सही योजनाएं बनाई जा सकती हैं।
वहीं सीनियर एडवोकेट अशोक हरणहल्ली ने भी इस पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि आखिर एक अलग सर्वे कराने की जरूरत ही क्या है, जब केंद्र सरकार की ओर से जनगणना का नोटिफिकेशन जारी हो चुका है। उसमें तो जातिवार गणना भी होनी ही है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने नए सर्वे का फैसला कर लिया है, जिसमें 420 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
इससे पहले भी 100 करोड़ खर्च करके एक सर्वे कराया गया था, लेकिन उस पर कोई फैसला नहीं लिया गया। उन्होंने कहा कि राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने मनमाने तरीके से 1561 जातियों को ओबीसी कैटिगरी में डाल दिया। इसके लिए तो कोई स्टडी भी नहीं कराई गई। एक अन्य सीनियर वकील विवेक सुब्बा रेड्डी ने कहा कि नई लिस्ट में तो कई उपजातियों का ही जाति के तौर पर उल्लेख किया गया है। उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि साइंटिफिक तरीके से सर्वे नहीं किया गया।