ज़िंदगी: एक सराय या स्थायी निवास? बादशाह और फकीर की कहानी से आज का सच

ज़िंदगी: एक सराय या स्थायी निवास?

बादशाह और फकीर की कहानी से आज का सच

लेखक विशेष | 4thPiller.com

पुराने ज़माने की बात है—एक मुसलमान बादशाह के दरबार में एक फकीर आया। पहरेदारों ने रोकने की कोशिश की, तो फकीर ने कहा—“कौन रोक सकता है? यह महल किसी का नहीं, यह तो सराय है।”
बादशाह भड़क गया, लेकिन फकीर ने तर्क दिया कि इस महल में पहले उसके पिता थे, फिर दादा, और उससे भी पहले कोई और। जो आया, चला गया।
फकीर बोला—“यह निवास नहीं, यह सराय है। तुम भी ठहरे हो और एक दिन चले जाओगे।”

बादशाह को यह बात भीतर तक छू गई। उसने समझ लिया कि असली मालिकियत इंसान की नहीं होती।

🌍 आज की हक़ीक़त

यह कहानी सिर्फ़ एक राजा और फकीर की नहीं, बल्कि आज की दुनिया का आईना है।

हम ज़मीन, महल, दौलत, पद, और सत्ता को अपनी स्थायी संपत्ति मान बैठते हैं।

लेकिन सच्चाई यही है कि इंसान यहाँ मेहमान है।

घर, गाड़ियाँ, बिज़नेस—सब यहीं रह जाएंगे, सिर्फ़ इंसान आगे बढ़ जाएगा।

आधुनिक समय में:

करोड़ों लोग करोड़पति बनने की दौड़ में लगे हैं, लेकिन करोना महामारी, युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं ने दिखा दिया कि ज़िंदगी अनिश्चित है।

राजनीति और सत्ता भी स्थायी नहीं—आज कोई नेता कुर्सी पर है, कल कोई और होगा।

टेक्नोलॉजी, शोहरत, सोशल मीडिया की चमक सब अस्थायी है।

 

⚖️ सबक

यह कहानी हमें सिखाती है कि –

1. ज़िंदगी को स्थायी मकान नहीं, एक सराय समझो।

2. मोह-माया में उलझकर डर और असुरक्षा बढ़ती है।

3. सादगी और विनम्रता में ही सच्ची शांति है।

 

निष्कर्ष

आज भी वही फकीर की आवाज़ गूंजती है—
“यह सराय है… तुम ठहरे हो… और चले जाओगे।”
अगर हम यह मान लें कि यह दुनिया एक धर्मशाला है, तो भय और लोभ दोनों कम हो जाएंगे। इंसानियत और भाईचारा ही असली पूँजी है।

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