दोहा
कतर की राजधानी दोहा पर इजरायल के हालिया हमले ने पूरे अरब जगत को झकझोर दिया है। इस हमले को लेकर सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, ओमान और कुवैत जैसे खाड़ी देशों ने कड़ी नाराज़गी जताई है। अब इन देशों में विचार हो रहा है कि वे एकजुट होकर इजरायल को कड़ा जवाब दें । चाहे वह कूटनीतिक, सैन्य या आर्थिक मोर्चे पर क्यों न हो। कई विशेषज्ञ इसे ‘इस्लामिक नाटो’ जैसे गठबंधन की दिशा में पहला कदम मान रहे हैं।
कतर पर हमले ने बढ़ाई खाड़ी की बेचैनी
जून 2025 में ईरान ने कतर स्थित अमेरिकी बेस को निशाना बनाया था। सितंबर में इजरायल ने दोहा में हमास के राजनीतिक ठिकानों पर हमला कर दिया। कतर के प्रधानमंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान अल थानी ने कहा-“यह सिर्फ कतर पर नहीं, पूरे अरब पर हमला है। जवाब सामूहिक होगा।” दोहा में होने वाले अरब और इस्लामी शिखर सम्मेलन में इस पर बड़ा फैसला संभव है।
खाड़ी देशों की प्रतिक्रियाएं
सऊदी अरब ने कहा कि यह हमला अस्वीकार्य है। यूएई राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद 24 घंटे के भीतर दोहा पहुँचे और तुरंत कूटनीतिक हलचल शुरू कर दी। विशेषज्ञ मानते हैं कि खाड़ी देश अब ऐसे कदम उठाना चाहते हैं जिससे “भविष्य में इजरायली हमलों की संभावना ही खत्म हो जाए।” कुवैत विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बदर अल-सैफ ने कहा –“अगर हम अब एकजुट नहीं हुए तो अगला निशाना अन्य खाड़ी देश होंगे।”
कूटनीतिक विकल्प
यूएई अब्राहम समझौते में अपनी भागीदारी घटा सकता है, जिसके तहत इजरायल और अरब देशों के बीच रिश्ते सामान्य हुए थे। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कतर पहले ही इजरायली हमलों की निंदा का सर्वसम्मत प्रस्ताव पास करवा चुका है। कतर यह भी सोच रहा है कि वह अमेरिका और उसके विरोधियों के बीच मध्यस्थ की भूमिका से हट जाए।
क्या बनेगा 'इस्लामिक नाटो'?
खाड़ी देशों के बीच पहले से ही पारस्परिक रक्षा संधि है। 1980 के दशक का Peninsula Shield Force समझौता अब सक्रिय किया जा सकता है। वायु और मिसाइल डिफेंस सिस्टम को एकीकृत करने की तैयारी पर विचार हो रहा है। अधिकांश खाड़ी देश अमेरिकी हथियारों पर निर्भर हैं, लेकिन अब वे अपनी रक्षा क्षमता में विविधता लाने की कोशिश कर सकते हैं।
इजरायल के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार
सऊदी अरब, कतर, कुवैत और यूएई के पास खरबों डॉलर के संप्रभु धन कोष हैं। इनका इस्तेमाल इजरायल की सप्लाई चेन और अर्थव्यवस्था को चोट पहुँचाने के लिए किया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अरब देश उन कंपनियों का बहिष्कार कर सकते हैं, जिनकी इजरायल की अर्थव्यवस्था में बड़ी हिस्सेदारी है। यह संदेश भी दिया जा सकता है कि “अगर हम असुरक्षित हैं और इसका कारण इजरायल है, तो हमारा पैसा कहीं और जाएगा।”