छत्तीसगढ़ के जंगलों से गायब होते वन्यप्राणी : वन विभाग संरक्षण में नाकाम, ठेकेदारी में मशगूल

छत्तीसगढ़ के जंगलों से गायब होते वन्यप्राणी : वन विभाग संरक्षण में नाकाम, ठेकेदारी में मशगूल

छत्तीसगढ़ के जंगल, जिन्हें कभी हिरणों, चितलों, तेंदुओं और जंगली सूअरों (Wild Boar) के झुंडों के लिए जाना जाता था, आज वीरान होते जा रहे हैं। कवर्धा, चिल्फी अभयारण क्षेत्र, केशकाल घाटी, बारणवापारा और गुरु घासीदास राष्ट्रीय उद्यान जैसे इलाकों में 2–3 साल पहले तक सड़कों से गुजरते समय स्थानीय लोग और पर्यटक हिरण व तेंदुए को शावकों समेत आसानी से देख लेते थे। लेकिन अब नजारा पूरी तरह बदल गया है — यह वन्यजीव सामान्य रास्तों पर तो छोड़िए, कोर एरिया में भी नजर नहीं आते।

वन अधिकारियों की नाकामी और भ्रष्टाचार

इस स्थिति के लिए सबसे बड़ा कारण है — वन विभाग की कार्यशैली। IFS, ACF से लेकर DFO तक अधिकांश अधिकारी अपने मूल दायित्व को भूल चुके हैं।

इनका सारा ध्यान कैंपा (CAMPA) और नरवा मद में मिलने वाले बजट से पुल-पुलिया, WBM रोड, स्टॉपडेम और बाउंड्रीवाल बनाने पर है।

CCF और PCCF स्तर तक के अधिकारी भी शिकायतों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्ही शिकायतों को बंद करने या फाइल बंद करने के एवज़ में रेंजर Sdo और अधीनस्थ कर्मचारियों से वसूली में व्यस्त रहते हैं।

वन्यप्राणियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए कोई ठोस प्लान या एजेंडा इन अधिकारियों के पास नहीं है।

यही कारण है कि जो वन्यजीव कभी आम दृश्य हुआ करते थे, वे या तो शिकारियों के शिकार हो गए या पलायन कर गए।

Working Plan सिर्फ दिखावा

छत्तीसगढ़ के लगभग सभी वनमंडलों के वर्किंग प्लान में वन्यजीव संरक्षण का कोई ठोस प्रावधान ही नहीं है।

प्लान की प्राथमिकता केवल वृक्षों की मार्किंग, विदोहन (कटाई-निकासी), कंटूर ट्रेंच, स्टॉपडेम, पुल-पुलिया और बाउंड्रीवाल तक सीमित है।

“Wildlife Protection / Conservation Plan” किसी भी नियमित वनमंडल ने तैयार नहीं किया।

इस विषय पर जब उपलब्धि (Achievement) पूछी गई तो नतीजा 0% मिला।

ATR और बारनवापारा का हाल

अचानकमार टाइगर रिजर्व (ATR) गुरु घासीदास तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व, कवर्धा के भोरमदेव और बारनवापारा में भी स्थिति चिंताजनक है। इन क्षेत्रों में भी पिछले वर्षों में वन्यजीवों की संख्या में गिरावट साफ देखी जा रही है।

कवर्धा के ग्रामीणों का कहना है:
“पहले बरसात या ठंडी के दिनों में सड़क किनारे हिरण और जंगली सूअर दिख जाते थे। अब सालों हो गए, ऐसा नजारा देखने को नहीं मिला। लगता है सब शिकारियों के हाथ चढ़ गए या जंगल छोड़कर कहीं और चले गए।”

पर्यावरणविदों की राय

वरिष्ठ पर्यावरणविद् डॉ. आर.पी. दुबे कहते हैं –
“छत्तीसगढ़ में वन्यजीव संरक्षण फेल होने का सबसे बड़ा कारण है विभाग का भ्रष्टाचार और ठेकेदारी। CAMPA और नरवा फंड से अगर आधा पैसा भी सही दिशा में खर्च हो, तो जंगलों की जैव विविधता को बचाया जा सकता है।”

रायपुर की एक NGO कार्यकर्ता एवन बंजारा ने कहा –
“वन विभाग को अब तय करना होगा कि वो ‘निर्माण विभाग’ है या ‘संरक्षण विभाग’। अगर प्राथमिकता नहीं बदली तो आने वाले 10 साल में छत्तीसगढ़ के जंगल सिर्फ पेड़ों और दीवारों तक सीमित रह जाएंगे।”

असल जिम्मेदारी क्या है?

IFS अधिकारियों का मूल कार्य है –

वनों और वन्यजीवों का संरक्षण

रहवास (Habitat) का सुधार

चारागाह विकास और जल स्रोतों का प्रबंधन

शिकार की रोकथाम

जैव विविधता संतुलन

लेकिन हकीकत यह है कि विभाग ने खुद को “निर्माण विभाग” में तब्दील कर लिया है, जहाँ संरक्षण की जगह भ्रष्टाचार और ठेकेदारी संस्कृति हावी है।

 

उम्मीद की किरण…. अरुण पाण्डेय…

अब छत्तीसगढ़ के वन विभाग में कड़क और निष्ठा से कार्य करने वाले अधिकारी अरुण पाण्डेय की पोस्टिंग से थोड़ी उम्मीद बंधी है।
लोगों को भरोसा है कि पाण्डेय जी विभाग को “निर्माण विभाग” की छवि से निकालकर फिर से संरक्षण विभाग बनाएंगे।

अब देखना यह होगा कि पाण्डेय जी जनता की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं या फिर अन्य IFS अफसरों की तरह सिस्टम के दबाव और भ्रष्टाचार की दलदल में फँस जाते हैं।

 

निष्कर्ष

छत्तीसगढ़ के जंगलों का सन्नाटा बताता है कि विभागीय लापरवाही और भ्रष्टाचार ने वन्यजीवों का भविष्य दांव पर लगा दिया है। सवाल यह है कि जब CCF और PCCF स्तर पर भी किसी वनमंडल से यह नहीं पूछा गया कि वन्यजीव संरक्षण में उनकी उपलब्धि क्या है, तब विभाग का मूल उद्देश्य ही कहाँ बचा है?

👉 छत्तीसगढ़ की जैव विविधता बचाने के लिए ज़रूरी है कि वन विभाग को निर्माण से हटाकर संरक्षण-केन्द्रित कार्यशैली में लौटाया जाए, अन्यथा आने वाली पीढ़ियाँ इन वनों में सिर्फ बाउंड्रीवाल और पुल-पुलिया ही देख पाएंगी, वन्यजीव नहीं।

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