छत्तीसगढ़ के जंगलों से गायब होते वन्यप्राणी : वन विभाग का फोकस संरक्षण नहीं, ठेकेदारी पर! IFS अधिकारी मूल दायित्व भूलकर निर्माण कार्यों में उलझे, भ्रष्टाचार की दलदल में फंसा सिस्टम; अरुण पांडेय की पोस्टिंग से उम्मीदें जगीं।

IFS अधिकारी मूल दायित्व भूलकर निर्माण कार्यों में उलझे, भ्रष्टाचार की दलदल में फंसा सिस्टम; अरुण पांडेय की पोस्टिंग से उम्मीदें जगीं।

 

छत्तीसगढ़ वन विभाग पर सवाल : आरएफ-पीएफ में क्यों खत्म हो रहे हैं वन्यजीव?

छत्तीसगढ़ के राष्ट्रीय उद्यान और अभयारण्यों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी के संरक्षित वनक्षेत्र (RF/PF) दिन पर दिन वन्यजीवों से खाली होते जा रहे हैं। यह यक्ष प्रश्न हर जागरूक नागरिक और पर्यावरण प्रेमी के मन में उठ रहा है कि आखिर वन विभाग इन वन्यप्राणियों को बचाने, संरक्षण और संवर्धन में पूरी तरह विफल क्यों साबित हो रहा है?

विशेषज्ञों का कहना है कि वन्यप्राणी संरक्षण IFS अधिकारियों का मूल दायित्व है, लेकिन आजकल कई अधिकारी अपने वास्तविक कर्तव्यों को भूलकर भ्रष्टाचार और ठेकेदारी प्रवृत्ति में उलझ गए हैं। हालात इतने बिगड़े हैं कि विभाग अब “वन विभाग” कम और “निर्माण विभाग” ज्यादा दिखाई देने लगा है।

IFS का बेसिक कार्य क्या है?

IFS अधिकारियों का मूल कार्य है –

वनों की सुरक्षा और संरक्षण

वन्य प्राणियों का संवर्धन और रहवास सुधार

चारागाह विकास और भोजन की व्यवस्था

वृक्षारोपण और जैव विविधता का संतुलन बनाए रखना

स्थानीय समुदायों को वन संरक्षण में जोड़ना

लेकिन हकीकत यह है कि आजकल विभाग का बजट पुल-पुलिया, स्टॉपडेम, रपटा, CC रोड, भवन और बाउंड्रीवाल जैसी योजनाओं में ही खर्च हो रहा है।

तमोर पिंगला का मामला और भ्रष्टाचार की जड़

मार्च 2025 में तमोर पिंगला टाइगर रिजर्व में पदस्थ IFS अधिकारी सौरभ ठाकुर का उदाहरण सामने आया। आरोप है कि करीब 100 करोड़ रुपये की योजनाएँ में से 60 से 70 करोड़ रूपये तो – पुल-पुलिया, स्टॉपडेम, रोड और भवन निर्माण – के नाम पर खर्च कर डाली गईं। जबकि वन्यप्राणियों के भोजन, रहवास और संरक्षण जैसे सबसे जरूरी कार्यों पर ध्यान ही नहीं दिया गया।

वन्यप्राणी डिवीजन का पूरा बजट उठाकर देखा जाए तो यह साफ दिखता है कि “नरवा” या अन्य फंड से केवल निर्माण कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है। जबकि चारागाह विकास, वन्यप्राणियों के लिए जल स्रोत, भोजन और संरक्षण कार्य कागजों तक ही सीमित रह जाते हैं।

सिस्टम का खेल और जांच की औपचारिकता

शिकायत होने पर विभागीय सीनियर IFS अधिकारी अक्सर जांच का आदेश जरूर जारी कर देते हैं, लेकिन पीछे से संबंधित अधिकारियों को फोन करके कहते हैं –
“छोटी-मोटी मतलब 10-20 करोड़ कि राशि को भी नहीं निपटा सकते, अपने स्टाफ में देखो किसने जानकारी लीक की है, जल्दी से काम खत्म करो, जांच टीम तो बाद में जाकर मामले को औपचारिक रूप से खत्म कर देगी।”

यानी पूरा सिस्टम भ्रष्टाचार की चक्की में पिस रहा है और वन्यप्राणी संरक्षण की प्राथमिकता कहीं पीछे छूट गई है।

उम्मीद की किरण – अरुण पांडेय की पोस्टिंग

इस बीच विभागीय हलकों में एक सकारात्मक संदेश यह है कि शासन ने हाल ही में IFS अधिकारी अरुण पांडेय की पोस्टिंग की है। प्रशासनिक स्तर पर यह संकेत माना जा रहा है कि सरकार अब कठोर और साफ-सुथरी कार्यशैली चाहती है।

अरुण पांडेय को उनके

कड़क प्रशासनिक रुख

टेक्निकल नॉलेज

स्वास्थ मानसिकता और शारीरिक रूप से फिट अधिकारी
के लिए जाना जाता है। उनकी कार्यशैली इतनी व्यवस्थित है कि अधीनस्थ अधिकारियों को यह महसूस तक नहीं होता कि कब उन्होंने बात ही बात में सिंपली बोल चाल कि भाषा में ट्रेंड कर दिया और कब उन्होंने निर्देश दिए और कब फील्ड में उसका क्रियान्वयन शुरू हो गया।

आगे की राह

अब उम्मीद की जा सकती है कि वन विभाग अपनी मूल जिम्मेदारियों की ओर लौटेगा। IFS अधिकारी भ्रष्टाचार के दलदल से निकलकर फिर से वन्यप्राणियों की सुरक्षा, संरक्षण और संवर्धन पर ध्यान देंगे। अरुण पांडेय की कार्यशैली से यह भी संभावना बनती है कि विभाग में कुछ हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगे और छत्तीसगढ़ के जंगलों में खत्म होते जा रहे वन्यप्राणियों के लिए एक नई सुबह की शुरुआत हो।

यह खबर सिर्फ सवाल नहीं उठाती बल्कि यह संकेत भी देती है कि यदि सही दिशा में कार्य किया जाए तो छत्तीसगढ़ की जैव-विविधता और वन्यजीवों को बचाना अभी भी संभव है।

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