दिल्ली हाई कोर्ट का चेतावनी भरा निर्देश: अनधिकृत निर्माण पर कार्रवाई, कोर्ट का दुरुपयोग न हो

नई दिल्ली
अनधिकृत निर्माण करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की कि दिल्ली में अनधिकृत निर्माण करने वालों से धन उगाही के लिए अदालत का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने कहा कि अनधिकृत निर्माण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए, लेकिन इस न्यायालय का इस्तेमाल ऐसे निर्माण करने वालों से धन उगाही के लिए नहीं किया जा सकता। यह स्पष्ट रूप से न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।
 
तीन लोगों ने डाली थी याचिका
अदालत ने उक्त टिप्पणी जामिया नगर इलाके में एक संपत्ति पर तीन व्यक्तियों द्वारा किए जा रहे अवैध और अनधिकृत निर्माण को रोकने और उसे ध्वस्त करने के लिए अधिकारियों को निर्देश देने की मांग से जुड़ी तीन व्यक्तियों की याचिका पर की। पीठ ने नोट किया कि याचिकाकर्ता दिल्ली के बजाय अमरोहा का निवासी है और उसका संबंधित निर्माण और इलाके से कोई सरोकार है। अदालत ने यह भी पाया कि एक ही संपत्ति के लिए तीन अलग-अलग लोगों द्वारा याचिकाएं दायर की गई हैं।

ध्वस्तीकरण आदेश जारी किया
सुनवाई के दौरान दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने तर्क दिया कि एक कारण बताओ नोटिस जारी करने के बाद ध्वस्तीकरण आदेश जारी किया गया था। इसके बाद 10 जुलाई को आंशिक ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की जा चुकी है और आगे की कार्रवाई चार सितंबर के लिए निर्धारित की गई थी। वहीं, स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) की तरफ से तर्क दिया गया कि हाई कोर्ट के समक्ष ऐसे कई मामले हैं, जिनमें ऐसे लोगों द्वारा याचिकाएं दायर की गई थीं जो न तो उस इलाके में रहते हैं और न ही उस संपत्ति से उनका कोई संबंध है।

कैसे दायर हो रहीं अलग-अलग याचिकाएं
अदालत ने नोट किया कि मामले की सुनवाई शुरू होने पर याचिकाकर्ता की ओर से कोई भी पेश नहीं हुआ, जबकि आदेश पारित होने से पहले मामले की कुछ समय तक सुनवाई हो चुकी थी। तथ्यों को रिकार्ड पर लेते हुए पीठ ने कहा कि एमसीडी पहले ही संबंधित संपत्ति में मौजूद अनधिकृत निर्माण के खिलाफ कार्रवाई कर रही है, लेकिन अनधिकृत निर्माण होने के संबंध में लोगों को ब्लैकमेल करके उनसे जबरन वसूली करने के उद्देश्य से दायर की जाने वाली ऐसी याचिकाओं को उचित नहीं ठहराया जा सकता। वहीं, अदालत ने संबंधित डीसीपी को यह जांच करने का निर्देश दिया कि एक ही संपत्ति के संबंध में अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा अलग-अलग याचिकाएं कैसे दायर की जा रही हैं।

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