मुग़ल सम्राट मोहम्मद अकबर: “ज़िल्ले-इलाही” की मिसाल और आज के लिए सीख
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परिचय
मुग़ल सम्राट मोहम्मद अकबर (1542–1605) भारत के इतिहास में न केवल अपनी विजय और साम्राज्य विस्तार के लिए जाने जाते हैं, बल्कि अपनी धर्मनिरपेक्ष नीतियों, सामाजिक सुधारों और जनता से जुड़ने के तरीकों के लिए भी प्रसिद्ध हैं। “ज़िल्ले इलाही” (ईश्वर की छाया) का ख़िताब उन्हें इसीलिए दिया गया क्योंकि उनकी शासन-शैली को न्यायप्रिय, सर्वसमावेशी और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक माना गया।
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जीवनी का संक्षिप्त परिचय
जन्म: 15 अक्टूबर 1542, अमरकोट (सिंध, वर्तमान पाकिस्तान)
पिता: हुमायूँ
माता: हमीदा बानो बेगम
राजगद्दी: 1556 (13 वर्ष की आयु में, पानीपत की दूसरी लड़ाई के बाद)
मृत्यु: 27 अक्टूबर 1605, आगरा
राजधानी: पहले आगरा, बाद में फ़तेहपुर सीकरी और पुनः आगरा
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राजपाठ के तरीके
अकबर का शासन-तंत्र केंद्रीकृत और संगठित था, जिसमें मंसबदारी व्यवस्था मुख्य आधार थी।
प्रांतों का विभाजन (Subahs) → सूबेदार (गवर्नर) नियुक्त
वित्त, सैन्य, न्याय और धर्म के मामलों में अलग-अलग मंत्री
प्रशासन में हिंदू और मुस्लिम दोनों को समान अवसर
राजस्व नीति: टोडरमल द्वारा बनाई गई ज़ब्त प्रणाली (भूमि की पैदावार और औसत उपज पर आधारित कर प्रणाली)
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जनता की सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति
अकबर के समय में कृषि, हस्तशिल्प, वस्त्र-उद्योग और मसालों का व्यापार फला-फूला।
किसान अपेक्षाकृत सुरक्षित महसूस करते थे क्योंकि ज़मींदारों की मनमानी रोकने के लिए नियम बनाए गए थे।
सामाजिक मेल-जोल बढ़ा; हिंदू-मुस्लिम उत्सवों में दोनों समुदाय भाग लेते थे।
शिक्षा, साहित्य और कला का विकास हुआ — नवरत्न जैसे बीरबल, तानसेन, अबुल फ़ज़ल, फैज़ी दरबार में थे।
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सामाजिक ताना-बाना और धार्मिक सोच
अकबर ने सुलह-ए-कुल (सबके साथ शांति) की नीति अपनाई — सभी धर्मों के प्रति सम्मान।
1564 में हिंदुओं पर लगने वाला जज़िया कर समाप्त कर दिया।
राजपूत राजाओं से मैत्री संबंध — विवाह-नीति से राजनीतिक स्थिरता।
फ़तेहपुर सीकरी में “इबादतख़ाना” बनवाया, जहाँ विभिन्न धर्मों के विद्वान संवाद करते थे।
1582 में दीन-ए-इलाही नामक नैतिक और आध्यात्मिक विचार-धारा शुरू की, जिसमें सभी धर्मों की अच्छी बातें शामिल थीं।
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क्या अकबर ने हिंदुओं पर इस्लाम थोपने की कोशिश की?
इतिहासकारों (जैसे अबुल फ़ज़ल, बदायूँनी, इरफ़ान हबीब) के अनुसार, अकबर के शासनकाल में इस्लाम थोपने का कोई सबूत नहीं मिलता।
उन्होंने मंदिर तोड़ने या पूजा-पाठ पर पाबंदी लगाने के आदेश नहीं दिए, बल्कि कई मंदिरों और गुरुद्वारों को ज़मीन और अनुदान दिए।
उन्होंने अंतर-धार्मिक विवाहों को प्रोत्साहित किया और हिंदू रीति-रिवाजों का आदर किया।
धार्मिक रूपांतरण (Conversion) के लिए कोई अनिवार्यता या दबाव नहीं था।
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क्या अकबर ने हिंदुओं के खिलाफ कानून बनाए?
उल्टा, उन्होंने भेदभावपूर्ण कानून हटाए, जैसे जज़िया कर, तीर्थ-कर।
अदालत में हिंदू और मुस्लिम दोनों की गवाही समान महत्व रखती थी।
सेना और प्रशासन में हिंदुओं की संख्या बढ़ी — मंसबदारों में 30% से अधिक राजपूत और अन्य हिंदू थे।
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अकबर के समय की GDP बनाम आज की GDP
अर्थशास्त्री एंगस मैडिसन के अनुमानों के अनुसार:
अकबर काल (1600 के आसपास): भारत का वैश्विक GDP में हिस्सा लगभग 22-25% था।
GDP (1600, अनुमानित, PPP): ~ ₹90–100 लाख करोड़ (आज के मूल्य में, सोने और महंगाई समायोजन के बाद)
आज (2025): भारत का वैश्विक GDP में हिस्सा लगभग 7% है, नाममात्र GDP लगभग ₹300 लाख करोड़ (USD ~4.1 ट्रिलियन)।
अर्थात, अकबर के समय भारत विश्व का सबसे समृद्ध और औद्योगिक राष्ट्रों में था, जबकि आज भी हम शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में हैं, लेकिन अनुपातिक हिस्सा कम है।
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आज के लिए सीख
1. धर्मनिरपेक्षता: अकबर ने साबित किया कि मज़बूत राष्ट्र की नींव सभी धर्मों के सम्मान में है।
2. आर्थिक समावेशन: जब हर वर्ग को अवसर मिला, तब साम्राज्य आर्थिक रूप से भी फला-फूला।
3. सामाजिक एकता: जाति-धर्म से ऊपर उठकर समानता और भाईचारे का माहौल सबसे बड़ी ताक़त है।
4. नेतृत्व का दृष्टिकोण: शासक को जनता की भाषा, संस्कृति और परंपराओं को अपनाना चाहिए, थोपना नहीं।
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निष्कर्ष
मोहम्मद अकबर का शासन इस बात का प्रमाण है कि एकता, न्याय और धार्मिक सहिष्णुता से ही देश समृद्ध और शक्तिशाली बनता है। आज जब कुछ राजनीतिक ताकतें जाति और धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाती हैं, तब अकबर का इतिहास हमें याद दिलाता है कि भारत की असली पहचान उसकी विविधता में है।
अगर हम अकबर की सुलह-ए-कुल नीति को आज के जीवन और राजनीति में लागू करें, तो भारत न केवल आर्थिक शक्ति बनेगा, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी विश्व के लिए आदर्श बन सकता है।