दिल्ली में फर्जी पुलिसवाले तैयार करने का धंधा, 2800 रुपये में मिल रही वर्दी

 नई दिल्ली

दिल्ली विश्वविद्यालय के नॉर्थ कैंपस से महज आधा किलोमीटर दूर, जीटीबी नगर के पास न्यू किशोर मार्केट की गलियों में एक अलग ही दुनिया बसती है। यहां की सादगी भरी दुकानें कमला नगर मार्केट की चमक-दमक से कोसों दूर हैं, लेकिन इनका धंधा कुछ खास है। यहां दिल्ली पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र बलों के लिए खाकी वर्दियां सिलती हैं। हैरानी की बात यह है कि कोई भी आकर इन्हें बनवा सकता है। बिना किसी जांच और सवाल-जवाब के। बस पैसे दो और पुलिस वाले बन जाओ।

इस साल दिल्ली में कम से कम छह मामले सामने आए, जिनमें 17 लोग नकली पुलिसवाले बनकर अपराध करते पकड़े गए। अपहरण, उगाही, हनी-ट्रैपिंग से लेकर महिलाओं का पीछा करने तक ये नकली खाकीधारी हर तरह की वारदात को अंजाम दे रहे हैं।
आसानी से मिल जाती है वर्दी

एक टीम ने न्यू किशोर मार्केट का दौरा किया और सच का पर्दाफाश किया। दो बार, अलग-अलग बहाने बनाकर, उन्होंने पुलिस की वर्दियां सिलवाईं। एक बार नाटक के लिए, तो दूसरी बार सब-इंस्पेक्टर बनकर। हैरानी की बात यह है कि दोनों बार वर्दी आसानी से मिल गई।
दुकान नंबर 1: सवाल तो बनता है, पर…

किंग्सवे कैंप मेट्रो स्टेशन के पास एक छोटी-सी दुकान। तीन दर्जी खाकी कपड़ों के बीच फर्श पर बैठे, सिलाई मशीनों की खटपट के बीच काम में डूबे हुए। दुकानदार काले खान ने बताया, “हां, हम दिल्ली पुलिस की वर्दियां सिलते हैं।” जब हेड कांस्टेबल की वर्दी मांगी गई, तो उन्होंने आईडी कार्ड मांगा। नाटक का बहाना सुनकर बोले, 'थाने से लिखित पत्र लाओ।' सख्ती दिखी, लेकिन अगली दुकान ने सारी उम्मीदें तोड़ दीं।
दुकान नंबर 2: पैसा बोलता है

सड़क के उस पार एक और दुकान। यहां जवान दर्जी ने 'नाटक के लिए' कांस्टेबल की वर्दी मांगने पर पलक भी नहीं झपकी। उसका सहायक बोला, 'पुलिस से पत्र मांगना चाहिए,' लेकिन मालिक ने उसे चुप करा दिया। नाप लिया गया, 2,800 रुपये का बिल थमा दिया गया और डिलीवरी की तारीख दे दी गई।
दुकान नंबर 3: सब-इंस्पेक्टर का रौब

तीसरी दुकान में तो कमाल ही हो गया। एक पत्रकार ने सब-इंस्पेक्टर बनकर दस्तक दी। दुकानदार ने झट से कपड़े के सैंपल पेश किए। बोला- 2,000 रुपये में पूरी वर्दी मिल जाएगी अगर प्रीमियम कपड़ा चाहिए तो 3,500 रुपये लगेंगे। जब नाप लिया जा रहा था, तब दर्जी ने PSI नंबर पूछा। पत्रकार ने अनजान बनते हुए पूछा, 'PSI नंबर क्या होता है?' दर्जी को शक हुआ, लेकिन पत्रकार ने रौब झाड़ते हुए कहा, 'अब आईडी भी चाहिए तुमको?' इतना कहते ही बात बन गई। दुकानदार बोला, 'नहीं साहब, जरूरत नहीं।' इंडिया गेट का प्रतीक या कोई और डिजाइन का बैज चुनने को कहा गया। इसके बाद एक हफ्ते में वर्दी तैयार हो गई।
अपराध की खाकी कहानियां

नकली वर्दी का यह खेल कोई मजाक नहीं। इस महीने की शुरुआत में, दो लोग दिल्ली पुलिस और ईडी के अधिकारी बनकर सम्राट होटल के बेंटले शोरूम के मैनेजर से 30 लाख रुपये लूट ले गए। जून में, लक्ष्मी नगर में आठ नकली पुलिसवालों ने एक इंश्योरेंस ऑफिस पर रेड मारी और कीमती सामान लूट लिया। जुलाई में, IGI हवाई अड्डे पर एक 23 साल का लड़का नकली नियुक्ति पत्र और जाली आईडी के साथ सब-इंस्पेक्टर बनकर पकड़ा गया। उसने किंग्सवे कैंप से वर्दी खरीदी थी।

मई में, भजनपुरा में एक नकली ट्रैफिक पुलिसवाला उगाही करते पकड़ा गया। फरवरी में, रोहिणी में हनीट्रैप रैकेट ने पुलिस वर्दी का इस्तेमाल कर लोगों को डराया और ब्लैकमेल किया। उसी महीने, तीन कॉलेज छात्र नकली पुलिसवाले बनकर एक सिक्योरिटी गार्ड को लूटते पकड़े गए। जून में, मुनीरका में पांच लोगों ने पुलिसवाले बनकर बंदूक की नोक पर एक व्यक्ति को किडनैप कर लिया।
पुलिस की मुश्किल, दर्जी का पेंच

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने माना, 'यह एक बड़ी समस्या है। हम इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अमल में दिक्कत है।' पुलिस ने दर्जियों को मौखिक रूप से आईडी, बेल्ट नंबर, या थाने से संपर्क करने की हिदायत दी है, लेकिन लिखित नियमों के अभाव में यह सख्ती ढीली पड़ जाती है।

दर्जी भी अपनी मजबूरी बताते हैं। 18 साल से दुकान चलाने वाले काले खान कहते हैं, “मैं हमेशा आईडी मांगता हूं। बड़े अधिकारियों से सीधे बात करता हूं। लेकिन कोई झूठ बोले तो हम क्या करें? कोई रूलबुक तो है नहीं।' 30 साल से पुलिसवालों की वर्दी सिलने वाले 59 साल के राजिंदर कुमार कहते हैं, 'मैं बातचीत से समझ जाता हूं कि सामने वाला असली है या नकली। नाटक के लिए वर्दी सिलने से पहले लिखित अनुमति जरूरी है।'
असली-नकली का फर्क

पुलिस के मुताबिक, असली और नकली वर्दियों में फर्क दिखता है, लेकिन सिर्फ वही समझ सकता है जो जानता हो। कांस्टेबल की वर्दी में सिर्फ बाएं कंधे पर निशान होता है। हेड कांस्टेबल की वर्दी में लाल-नीली तीर की पट्टी भी होती है। असिस्टेंट सब-इंस्पेक्टर (ASI) के दोनों कंधों पर एक-एक तारा, नीचे नीली-लाल पट्टी और 'DP' लिखा होता है। सब-इंस्पेक्टर के दो तारे, इंस्पेक्टर के तीन, लेकिन लाल-नीली पट्टी नहीं। नेमप्लेट, बैज की जगह, और कंधों की पाइपिंग में भी अंतर होता है।

IPS अधिकारियों की वर्दी में राज्य का बैज नहीं होता, बल्कि अशोक प्रतीक, तलवार और तारे होते हैं। लेकिन आम जनता को ये बारीकियां कहां पता? नकली पुलिसवाले इन्हीं कमियों का फायदा उठाते हैं। कोई कांस्टेबल की कमीज पहनकर ASI बन जाता है, तो कोई रैंक मार्किंग्स ही भूल जाता है। एक चुराया हुआ बेल्ट, बैज, या टोपी भी रौब को पूरा कर देता है।

Recent Post

Live Cricket Update

You May Like This

error: Content is protected !!

4th piller को सपोर्ट करने के लिए आप Gpay - 7587428786