भिलाई।
श्री शंकरा विद्यालय, सेक्टर-10, भिलाई द्वारा फीस विलंब पर विद्यार्थियों से भारी-भरकम जुर्माना वसूलने के मामले ने तूल पकड़ लिया है। अधिवक्ता सौरभ चौबे ने छत्तीसगढ़ राज्य बाल संरक्षण आयोग को पत्र लिखकर इस प्रकरण में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। उन्होंने स्कूल प्रबंधन पर संविधान एवं शिक्षा अधिकार कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
चौबे द्वारा आयोग को भेजी गई शिकायत में बताया गया है कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से आने वाले दो बच्चों — कु. शेख इनाया (कक्षा 5वीं-E) एवं मो. जियान हमजा (कक्षा 7वीं-A) — पर विद्यालय ने ₹17,630 एवं ₹19,540 की पेनल्टी लगाई है। जबकि उनके पालक एक रोड साइड फूड स्टॉल के माध्यम से बेहद सीमित आय में अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं और कोविड-19 के बाद उनकी आर्थिक स्थिति और भी जर्जर हो गई है।
शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि पालकों ने कठिन परिस्थितियों में भी ₹30,000 की राशि जमा की है, किंतु बाकी जुर्माना चुकाना उनके लिए असंभव है। इसी तरह की पेनल्टी की मार कई अन्य निर्धन व मध्यमवर्गीय छात्रों पर भी पड़ी है, जिससे उनकी शिक्षा पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
कानूनी एवं संवैधानिक पहलू:
श्री चौबे ने अपनी शिकायत में कहा है कि यह कार्यवाही शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act, 2009) के स्पष्ट रूप से विरुद्ध है। यह अधिनियम बच्चों को 6 से 14 वर्ष तक की आयु में मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। साथ ही, किसी भी प्रकार की आर्थिक प्रताड़ना बाल हितों के विपरीत मानी जाती है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21-A हर बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार देता है। इसके अतिरिक्त, राष्ट्रीय बाल नीति एवं UN Convention on the Rights of the Child (UNCRC) के अनुच्छेद 28 के तहत भी बच्चों को आर्थिक शोषण से बचाना अनिवार्य है।
मांगें एवं अपेक्षित कार्रवाई:
अधिवक्ता सौरभ चौबे ने आयोग से निम्नलिखित मांगें की हैं:
1. सभी विद्यार्थियों पर लगाए गए जुर्माने (पेनल्टी) को तत्काल प्रभाव से समाप्त किया जाए।
2. भविष्य में किसी भी विद्यार्थी को इस प्रकार की आर्थिक दंड प्रणाली से प्रताड़ित न किया जाए, इसके लिए विद्यालय को चेतावनी दी जाए।
3. दोषी विद्यालय प्रबंधन के विरुद्ध विधिक कार्रवाई की जाए ताकि यह एक मिसाल बने और अन्य शिक्षण संस्थान भी ऐसी मनमानी से बचें।
अंतिम टिप्पणी:
शिक्षा का अधिकार केवल किताबों तक सीमित नहीं रहना चाहिए। यदि स्कूल प्रशासन अपने मनमाने आर्थिक दबावों से बच्चों की शिक्षा को बाधित करता है, तो यह केवल बच्चों का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का नुकसान है। अब यह देखना होगा कि राज्य बाल संरक्षण आयोग इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या स्कूल प्रबंधन के विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाए जाते हैं।