बड़ा बेटा विधायक, छोटा बेटा विधायक, एक बहू विधायक, एक पोता सांसद, दूसरा MLC, समधी विधायक, दामाद का भाई विधायक। ये देश के पूर्व PM और जनता दल (सेकुलर) के सबसे बड़े नेता एचडी देवगौड़ा का परिवार है, जो खुद भी राज्यसभा सांसद हैं। यानी एक ही परिवार में 5 विधायक, दो सांसद और एक MLC। एक पोता पिछला चुनाव हारा, इस बार टिकट का दावेदार। एक और बहू भी टिकट की रेस में।
यही कर्नाटक की फैमिली पॉलिटिक्स है। राज्य में अप्रैल-मई में विधानसभा चुनाव होने हैं। उम्मीदवारी के लिए राजनीतिक परिवारों ने लॉबिंग शुरू कर दी है। लॉबिंग अपने रिश्तेदारों को टिकट दिलवाने की है और यह सिर्फ JD (S) में नहीं, BJP और कांग्रेस में भी है।
BJP राज्य में अपने सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र को इलेक्शन के पहले ही सीधे कैबिनेट में शामिल कर सकती है। ऐसा येदियुरप्पा को सम्मान देने के लिए किया जा रहा है, साथ ही लिंगायत समुदाय में मैसेज भी पहुंचाना है कि पार्टी येदियुरप्पा के साथ हैं।
विजयेंद्र को इस बार विधायक का टिकट मिलना भी तय है। वे पिछली बार भी रेस में थे, लेकिन बताया जाता है कि BJP के एक राष्ट्रीय सचिव के ऑब्जेक्शन की वजह से उनका टिकट पक्का नहीं हो पाया था।
येदियुरप्पा चाहते हैं कि विजयेंद्र उनकी पारंपरिक सीट शिकारीपुरा से चुनाव लड़ें। वे यह बात एक रैली के दौरान मंच से भी कह चुके हैं, लेकिन पार्टी विजयेंद्र को कोई मुश्किल सीट जीतने का जिम्मा देने का सोच रही है। पार्टी का मानना है कि शिकारीपुरा कई साल से BJP का गढ़ है, वहां येदियुरप्पा का प्रचार करना काफी है। इसलिए वहां से किसी को भी खड़ा करेंगे, वो जीत ही जाएगा।
खैर, हम बात कर रहे हैं कर्नाटक की पॉलिटिक्स में परिवारों के दबदबे की। इस रिपोर्ट में पढ़िए और देखिए कैसे कुछ चुनिंदा परिवार राज्य की राजनीति को चला रहे हैं।
कर्नाटक में किसी की पॉलिसी लागू नहीं होती
कर्नाटक के सीनियर जर्नलिस्ट बेलागुर समीउल्ला कहते हैं, ‘कांग्रेस और BJP दोनों ही कहते हैं कि वे परिवार और वंशवाद की राजनीति को बढ़ावा नहीं देते, लेकिन कर्नाटक में किसी भी पार्टी की पॉलिसी लागू नहीं होती। यहां तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का बेटा ही विधायक है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश सांसद हैं। पूरे प्रदेश में कांग्रेस के सिर्फ डीके सुरेश ही जीते थे, ऐसे में पार्टी उन्हें टिकट देने से मना भी कैसे कर सकती है।’
‘JD (S) में तो बेटे-बहू से लेकर समधी और जमाई के भाई तक विधायक हैं। BJP में भी नाते-रिश्तेदारों को हर बार टिकट मिलते हैं। येदियुरप्पा के बेटे को विधायक का टिकट मिलना तय है। दूसरे नेता भी अपने बहू-बेटों के लिए लॉबिंग कर रहे हैं।’
देवगौड़ा की बहू ने खुद का नाम अनाउंस किया
अब तक JD(S) ने उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन एचडी देवगौड़ा की बहू भवानी रेवन्ना ने हासन सीट से खुद का नाम विधायक कैंडिडेट के तौर पर अनाउंस कर दिया है। माना जा रहा है कि उन्हें टिकट मिलना तय है।
सीनियर जर्नलिस्ट समीउल्ला कहते हैं हासन में कुल 8 विधानसभा सीटें आती हैं, इनमें से 7 सीटें अभी JD(S) के पास हैं और एक सीट BJP के पास है। इस सीट को BJP से छीनने के लिए ही भवानी रेवन्ना ने दावेदारी की है। इस जिले में देवगौड़ा परिवार की पकड़ भी बहुत मजबूत है। खासतौर से वोकलिंगा समुदाय उन्हें एकतरफा सपोर्ट करता है।
कुमारस्वामी बोले- टारगेट सिर्फ हमें किया जाता है…
पूर्व CM और JD(S) नेता कुमारस्वामी कहते रहे हैं कि कई नेता वंशवाद की राजनीति करते हैं, लेकिन टारगेट सिर्फ देवगौड़ा परिवार को किया जाता है। सभी को चुनाव लड़ने का अधिकार है, लेकिन प्रदेश में जाने वाले मैसेज और पार्टी संगठन के लिहाज से सही फैसला लिया जाएगा।
यहां परिवार ही पार्टी को चलाता है…
कर्नाटक के सीनियर जर्नलिस्ट अशोक चंदारगी कहते हैं, ‘महाराष्ट्र और कर्नाटक में वंशवाद की राजनीति एक जैसी है। यह बड़े जमींदार, कारोबारी परिवारों के हाथ में ही सत्ता है। JD(S) बच ही इसलिए पाई, क्योंकि उसे पूरा परिवार चला रहा है।’
‘सिर्फ JD(S) ही नहीं, बल्कि कर्नाटक में BJP से लेकर कांग्रेस तक सभी में वंशवाद की राजनीति दशकों से चली आ रही है। अब BJP येदियुरप्पा के बारे में क्या कह सकती है। उनका एक बेटा सांसद है। दूसरे को विधायक की टिकट मिलना तय है। वे खुद मुख्यमंत्री रहे हैं और मौजूदा विधायक हैं। हर पार्टी में ऐसा है।’
पार्टी फैमिली की प्रॉपर्टी है…
BJP के प्रवक्ता गणेश कर्णिक का कहना है, ‘वंशवाद का मतलब है एक ही परिवार का पार्टी को चलाना। JD(S) में देवगौड़ा परिवार के अलावा क्या कोई सोच सकता है, उस पार्टी को लीड करने के के बारे में। यही हाल कांग्रेस में भी था, अब जाकर उन्होंने खड़गे जी को अध्यक्ष चुना है। हमारे और दूसरी पार्टियों में अंतर ये है कि हमारी पार्टी को कोई एक परिवार नहीं चलाता। JD(S) में तो पार्टी फैमिली की प्रॉपर्टी है। इस वंशवाद को हम खत्म करने की बात करते हैं।’
कर्नाटक में सरकार बचाना BJP के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इसलिए हिजाब और हलाल मीट जैसे मुद्दे छोड़ पार्टी कास्ट पॉलिटिक्स पर काम कर रही है। मंत्रियों-विधायकों पर करप्शन के आरोप और कद्दावर नेता जनार्दन रेड्डी के अलग पार्टी बनाने से मुश्किलें और बढ़ी हैं। पढ़िए ये 3 रिपोर्ट…
1. BJP का UP वाला हिंदुत्व एजेंडा कर्नाटक में फेल, अगले 90 दिनों के लिए नई स्ट्रैटजी
UP में हिंदुत्व के जिस मुद्दे पर BJP ने 255 सीटें जीती थीं, वो कर्नाटक में फेल होता दिख रहा है। ये साबित हो रहा है कर्नाटक में BJP की बदली रणनीति से। बीते 90 दिनों में पार्टी ने हिजाब-हलाल-अजान जैसे मुद्दों से किनारा किया है और डेवलपमेंट पर बात करनी शुरू की है। BJP सूत्रों के मुताबिक अगले 90 दिनों के लिए एक नई स्ट्रैटजी भी तैयार की जा रही है। इसमें डेवलपमेंट के अलावा जाति की राजनीति पर फोकस रहने वाला है।
2. कर्नाटक में 30% विधायकों के टिकट काटेगी BJP, गुजरात फॉर्मूले से कर्नाटक बचाने की कोशिश
BJP ने जिस फॉर्मूले के दम पर गुजरात में 156 सीटें जीतीं, वही फॉर्मूला अब पार्टी कर्नाटक में भी आजमाने वाली है। इसके तहत करीब 30% विधायकों के टिकट काटे जाएंगे। टिकट उनके कटेंगे, जिनकी सर्वे में रिपोर्ट नेगेटिव आई है। यहां गुजरात की तरह CM नहीं बदला जा रहा, क्योंकि अब चुनाव में तीन महीने ही बचे हैं। ये तय है कि BJP जीती और सत्ता में लौटी तो भी बसवराज बोम्मई को फिर से CM नहीं बनाया जाएगा।
3. सुषमा स्वराज को मां कहने वाले जनार्दन रेड्डी ने नई पार्टी बनाई, बागियों को टिकट देंगे
साल 1999 था, BJP नेता सुषमा स्वराज कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ी थीं। सुषमा हार गईं, लेकिन यहां उन्हें मिले गली करुणाकर रेड्डी, गली जनार्दन रेड्डी और गली सोमशेखर रेड्डी। रेड्डी भाई सुषमा को थाई यानी मां कहते थे। इनमें से जी. जनार्दन रेड्डी BJP से अलग होकर नई पार्टी कल्याण राज्य प्रगति पक्ष (KRPP) बना चुके हैं। जनार्दन रेड्डी 16 हजार करोड़ के माइनिंग घोटाले में आरोपी हैं। उनकी पार्टी BJP और कांग्रेस से बागी हुए नेताओं को टिकट देगी।