उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की फाइल फोटो (बांए) । एएनआई
बिहार पुलिस प्रमुख से लेकर महाधिवक्ता के पद तक तमाम नियुक्तियां विशेष तौर पर राजद की पसंद के मुताबिक नहीं रही हैं. सीएम नीतीश कुमार की तरफ से अब तक कमान तेजस्वी के हाथों में नहीं सौंपी गई है.
पटना: जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल के नेताओं के बीच सार्वजनिक विवाद सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री के खिलाफ राजद विधायक सुधाकर सिंह के बयानों और ‘रामचरितमानस’ पर शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर की विवादास्पद टिप्पणियों तक ही सीमित नहीं है. दिप्रिंट को मिली जानकारी दरअसल इसकी जड़ें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रशासनिक निर्णय लेने की प्रक्रिया में राजद को कोई खास जगह न देने से जुड़ी हैं.
राजद के एक मंत्री ने दिप्रिंट को को बताया, ‘यह सरकार पिछले साल अगस्त में बनी थी. तबसे ही राजद के किसी भी मंत्री को अपनी पसंद का अधिकारी नहीं मिला है. यहां तक कि डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले स्वास्थ्य और सड़क निर्माण विभाग की जिम्मेदारी अभी प्रत्यय अमृत ही संभाल रहे हैं, जिन्हें मुख्यमंत्री का विश्वस्त अधिकारी माना जाता है.’
1991 बैच के आईएएस अधिकारी प्रत्यय अमृत को नीतीश का करीबी माना जाता है, जिन्होंने कोविड महामारी समेत तमाम मौकों पर मुख्यमंत्री को संकट से उबारा था.
नीतीश ने अभी तक उन बोर्डों और निगमों में भी रिक्त पद नहीं भरे हैं जिनमें राजद को अपने प्रतिनिधियों को ‘समायोजित’ कर लिए जाने की उम्मीद थी. अति पिछड़ा वर्ग आयोग की तरह जिन इक्का-दुक्का आयोगों का गठन हुआ भी, उनकी कमान जदयू के उम्मीदवार के हाथों में आई. जदयू के नवीन आर्य को अति पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया, जबकि राजद को आयोग के बाकी सदस्यों में शामिल होने से संतोष करना पड़ा.
राज्य प्रशासन में कई अहम नियुक्तियां भी राजद को रास नहीं आ रही हैं. पिछले माह आर.एस. भट्टी को बिहार का नया पुलिस प्रमुख नियुक्त करते समय भी नीतीश ने अपने सहयोगी की पसंद को नजरअंदाज कर दिया था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पुलिस बल की कमान एक अन्य वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी आलोक राज को सौंपने का पक्षधर था.
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नीतीश ने भट्टी के पूर्ववर्ती एस.के. सिंघल को केंद्रीय चयन परिषद का अध्यक्ष बनाया है जो पुलिस कांस्टेबलों की भर्ती सहित विभिन्न परीक्षाओं का आयोजन करती है. राजद पिछले साल अगस्त से पूर्व राज्य में विपक्षी दल होने के दौरान पुलिस बल के नेतृत्व की क्षमता समेत सिंघल की पूरी कार्यशैली का विरोध करता रहा था.
बिहार के पूर्व मंत्री पी.के. शाही को इस महीने महाधिवक्ता के तौर पर नियुक्त किए जाने ने जदयू के सहयोगी को और नाराज कर दिया. शाही इससे पहले 2005 से 2010 तक इसी पद पर रह चुके हैं.
2013 में, राजद प्रमुख लालू प्रसाद ने आरोप लगाया था कि चारा घोटाले के मामले में ट्रायल कोर्ट के जज निष्पक्ष नहीं थे क्योंकि वह नीतीश कुमार सरकार में तत्कालीन शिक्षा मंत्री शाही के रिश्तेदार थे.
नीतीश ने अपनी सद्भावना यात्रा के बीच लोगों के साथ संवाद के दौरान भी राजद के मंत्रियों को शामिल करने से परहेज किया और इसे जदयू का शो बना दिया.
अनदेखी से राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं में नाराजगी होने पर जोर देते हुए राजद के मंत्री ने कहा, ‘जब भी तेजस्वी यादव ने इनमें से कोई शिकायत सीएम के समक्ष उठाई तो नीतीश ने उन्हें यही आश्वासन दिया कि ‘हो जाएगा’ लेकिन इस पर किया कुछ नहीं. वह कहते थे कि उन्हें (तेजस्वी को) 2025 पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जब वह गठबंधन का नेतृत्व करेंगे.’
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार और उनके राजद समकक्ष मृत्युंजय तिवारी ने दिप्रिंट से कहा कि वैसे तो बुनियादी रूप से मुख्यमंत्री ही इन फैसलों के लिए अधिकृत थे.
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने पिछले महीने अपनी जन सुराज यात्रा के दौरान संकेत दिए थे कि गठबंधन 2025 से पहले ही खत्म हो सकता है, जब बिहार में विधानसभा चुनाव होने हैं. 2020 में किशोर ने नीतीश के साथ नाता तोड़ लिया था, जिन्होंने 2018 में उन्हें जदयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था.
सहयोगी दलों में बढ़ी कड़वाहट
बिहार में महागठबंधन के सत्ता में आने के बाद से ही राजनीतिक पर्यवेक्षक इस तरह की अटकलें लगाते रहे हैं कि नीतीश दूसरी भूमिका निभाएंगे और तेजस्वी को कमान सौंप बिहार छोड़कर दिल्ली चले जाएंगे.
हालांकि, नीतीश अगला चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में लड़े जाने की बात कहकर स्पष्ट संकेत दे चुके हैं कि वह अपने मौजूदा कार्यकाल के दौरान सीएम की कुर्सी छोड़ने का इरादा नहीं रखते हैं.
जनवरी के पहले सप्ताह में ही नीतीश ने घोषणा की कि वह 31 मार्च को विधानसभा का बजट सत्र समाप्त होने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी दलों के बीच एकजुटता सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे.
बहरहाल, जदयू और राजद के बीच कड़वाहट पिछले साल अक्टूबर से जारी है जब पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने नीतीश के साथ अभद्रता की थी और उनके शासन पर सवाल उठाया. चूंकि जदयू सुधाकर के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ा था, आखिरकार इस मामले में बुधवार को राजद थोड़ा झुक गया जब उसके राष्ट्रीय उपाध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी ने सुधाकर को कारण बताओ नोटिस जारी किया.
सिद्दीकी ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने राजद प्रमुख लालू प्रसाद के निर्देश पर ऐसा किया, जो किडनी प्रत्यारोपण के बाद सिंगापुर में स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं.
इस बीच, शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने ‘रामचरितमानस’ पर अपनी विवादस्पद टिप्पणी के लिए अभी तक माफी नहीं मांगी है, जिसकी जदयू ने मांग की थी. वहीं, तेजस्वी ने चंद्रशेखर का बचाव करते हुए कहा है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मामला है.
गौरतलब है कि राजद नेता ने दावा किया था कि ‘रामायण’ के दोहे-चौपाइयां ‘समाज में नफरत फैलाते हैं’ और साथ ही कुछ जातियों के खिलाफ भेदभाव का प्रचार करते हैं.
जदयू के एक वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट से बातचीत में माना, ‘राजद के कारण बताओ नोटिस (सिंह को) के बाद हम उम्मीद करते हैं कि मतभेदों में कमी आएगी क्योंकि चुनाव नजदीक आ रहे हैं. और वोट बैंक पर इसके प्रतिकूल प्रभाव के मद्देनजर सहयोगी एक-दूसरे को परेशान नहीं करना चाहेंगे. लेकिन नाराजगी तो रहेगी.’