”पैसा पानी की तरह जिस अनुपात में बहाया जा रहा, उससे सौ गुने तेजी से ”सड़कें तिनके की तरह बह रही है”

  • माओवाद के नाम पर अफसरों और ठेकेदारों की चांदी
  • ये है 60 प्रतिशत ऊंची दर पर बन रही सड़क का हाल
  • एल डब्ल्यू ई की राशि मे बड़ा भ्रष्टाचार
  • चौड़ीकरण के नाम पर काटे गए हज़ारों पेड़ भी हुए गायब

कोंटा से लौटकर देवशरण तिवारी, जगदलपुर

जगदलपुर । तेलंगाना के भद्राचलम से राजनांदगांव और फिर महाराष्ट्र को जोड़ने वाला स्टेट हाइवे क्रमांक 5 का काफी बड़ा हिस्सा आज भी माओवादियों के कब्जे में है ।राजनांदगांव ,अंतागढ़ ,गीदम ,बैलाडीला ,अरनपुर,जगरगुंडा तक यह मार्ग काफी हद तक माओवादियों के कब्जे से मुक्त हो चुका है लेकिन सुकमा जिले के जगरगुंडा के बाद किस्टाराम होते हुए तेलंगाना की सीमा तक करीब 65 किलोमीटर का हिस्सा आज भी माओवादियों के कब्जे में है। इस सड़क पर सी आर पी एफ का आखिरी कैम्प करीब डेढ़ साल पहले मिनपा में स्थापित किया गया है । दूसरे छोर पर पोटकपल्ली में सीआरपीएफ का कैम्प बीते 22 फरवरी को स्थापित किया गया है । इन दोनों कैम्पों के सामने तक सड़क का निर्माण कार्य शुरू हो चुका है । इन दोनों कैम्पों के बीच का इलाका अत्यंत संवेदनशील है । मिनपा के आगे दुलेड ,एलमागुण्डा, सकलेर,बेरमोर, सालातोंग,डुब्बामार्का, पालोड़ी आदि गाँव मे आज भी माओवादियों का राज चल रहा है । इन्हीं गाँव के बीच से गुजरने वाला ये स्टेट हाइवे बीते ढाई दशकों से बंद पड़ा है । कभी इस रास्ते पर बस और ट्रक दिन रात दौड़ा करती थीं आज यहां दिन के उजाले में पैदल चलना भी नामुमकिन जैसा लगता है ।

 

लोग इस खतरनाक रास्ते पर चलने के बजाय तीन गुना अधिक दूरी तय करते हुए तेलंगाना होकर वापस छत्तीसगढ़ के मरईगुड़ा,गोलापल्ली और किस्टाराम तक आना जाना पसंद करते हैं । सुकमा के लोग स्वयं के जिले के इस रास्ते की दूरी और इस रास्ते मे पड़ने वाले गावों के नाम भी भूल चुके है । कोंटा के जंगलों में दफन हो चुके इस स्टेट हाईवे पर हमारे साथ चलने के लिए स्थानीय ग्रामीणों ने भी इंकार कर दिया ।
इस इलाके से आये दिन प्रेशर बम, आई ई डी और लैंड माईन के बरामद होने की खबर सामने आती रही है । बीते तीन सालों में 500 से अधिक इस तरह का बारूदी समान यहां से बरामद किया जा चुका है । 30-40 किलोमीटर के इस इलाके में घमासान युद्ध चल रहा है । इसी एलमागुण्डा में 22 मार्च 2020 को नक्सली हमले में डी आर जी और एस टी एफ के 17 जवान शहीद हो चुके हैं । इसी मुठभेड़ के बाद नक्सली जवानों के पास से ए के 47, इंसास, एल.एम.जी और यू .बी .जी .एल. जैसे अत्याधुनिक हथियार भी लूट कर ले जाने में कामयाब रहे । इसके अलावा भी लगातार इस इलाके में दोनों पक्षों के बीच मुठभेड़ होती रहती है । बीते सप्ताह एनएसजी ग्रे – हाउंड और कोबरा द्वारा जिस इलाके में एयर स्ट्राइक की खबर चर्चा में थी यह वही इलाका है। माओवादियों के इस हेडक्वाटर को नेस्तनाबूद करने हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं और उधर माओवादी भी इस सल्तनत को अपने हाथों से जाने नही देना चाहते।
अरबों रुपये की लागत से बनाई जा रही इस सड़क की वास्तविक तस्वीर हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।जिसे देख कर आसानी से ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि कितनी ईमानदारी से हमारे अधिकारी अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं।

जिस सड़क के लिए यहां से लेकर जगरगुंडा अरनपुर बारसूर और धौड़ाई तक जवानों की शहादत हुई उस सड़क को बनाने में ठेकेदारों अफसरों और नेताओं ने भ्रष्टाचार का कोई मौका अपने हाथों से जाने नहीं दिया। 5-5 किलोमीटर की सड़क बनाने के ठेके एस.ओ.आर. से 50 -60 प्रतिशत ऊंची दरों पर इन ठेकेदारों को दिए गए।मुरुम और बोल्डर यहीं बगल के जंगलों को उजाड़ कर खोदने की गैरकानूनी मौखिक अनुमति भी जिले के बड़े अधिकारियों से मिल गई। ठेकेदारों के जान माल की हिफाज़त के लिए पैरामिलिट्री फोर्स के कैम्प लगाए गए।जिनकी पहरेदारी में सड़क और पुल बन रहे हैं उन्हीं की आंखों के सामने सड़कें उखड़ रही हैं और पुल बहे जा रहे हैं।

 

एलडब्लूई मद के नाम पर केंद्र सरकार से मिली अरबों रुपये की मदद मिट्टी में मिलती जा रही है और राज्य के आला अधिकारी हर छः महीने में इस सड़क का हवाई सर्वे कर अपनी जिम्मेदारियां निपटाते चले जा रहे हैं। आम तौर पर राज्यों में कानून और व्यवस्था के बिगड़ते हालात और इन हालात से न लड़पाने वाले राज्यों को कुछ समय के लिए इस तरह से केंद्रीय सुरक्षा बलों की सामयिक मदद मुहैया करवाई जाती है लेकिन ज़मीनी हालात देखने पर लगता है कि इस मदद की अभी दशकों तक ज़रूरत पड़ने वाली है। सभी जानते हैं कि बस्तर में नक्सलवाद के पैर पसारने के पीछे अशिक्षा और भ्रष्टाचार ही वो बड़े कारण हैं जिनसे लड़ने के प्रयास अब भी नही किये जा रहे हैं।
यह स्टेट हाईवे एक तरफ से बन रहा है और दूसरी तरफ से उखड़ता जा रहा है। औसतन हर किलोमीटर के निर्माण पर डेढ़ करोड़ रुपया खर्च किया जा रहा है लेकिन गुणवत्ता को जांचने परखने की जहमत कोई नही उठा रहा है। नारायणपुर से बारसूर हो या फिर बारसूर से जगरगुंडा,इस पूरी सड़क का हाल एक जैसा है। सुकमा जिले में इस सड़क का 64 किलोमीटर का हिस्सा आता है। यहां के निर्माण की हालत बहुत ज़्यादा खराब है। जगरगुंडा से आगे वाय जंक्शन के पास मिनपा कैम्प के ठीक सामने कुछ दिनों पहले एक पुल बनाया गया।
कैम्प के जवानों की गहन पहरेदारी में पुल तो बन गया ।ठेकेदार को उसका पारिश्रमिक मिल गया पीडब्ल्यूडी के अधिकारियों को उनका कमीशन भी मिल गया लेकिन पुल हल्की सी बारिश में बह गया जबकि इस मार्ग पर अभी भारी वाहनों की आवाजाही शुरू भी नहीं हुई है।इस पुल के आगे दुलेड गांव है। दुलेड से आगे पंद्रह साल पहले बने करीब दर्जन भर छोटे पुल अधूरे ही सही लेकिन आज भी मज़बूती के साथ खड़े हैं।ये वो पुराने पुल हैं जो अभी की तरह एसओआर से 50 प्रतिशत ऊंची लागत पर नहीं बनाए गए हैं और ना ही इन्हें बनाने के लिए सुरक्षा बलों की मदद और शहादत ली गई है।कुल मिलाकर नक्सलवाद नाम की यह बीमारी हमारे अफसरों,नेताओं और ठेकेदारों के लिए वरदान बनी हुई है।राज्य के अधिकारी जिस तरह एल डब्लू ई मद की इस राशि से खुलकर बंदरबांट करने में लगे हुए हैं उसी तरह केंद्र सरकार के अधिकारी भी इस खेल पर रहस्यमयी खामोशी की चादर ओढ़े बैठे हुए हैं।

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